
✍️ वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश बोराणा
जोधपुर से बड़ी खबर — राजस्थान हाईकोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय, कहा- नॉमिनेशन मात्र ट्रस्टी की भूमिका, संपत्ति का हक उत्तराधिकार कानून से ही मिलेगा
जोधपुर। पारिवारिक पेंशन को लेकर दो महिलाओं के बीच चल रहे विवाद पर राजस्थान हाईकोर्ट ने बड़ा और महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि सिर्फ पीपीओ या नामांकन (Nomination) में नाम दर्ज होना किसी को पेंशन या संपत्ति का वास्तविक मालिक नहीं बनाता, नॉमिनी केवल राशि प्राप्त करने का माध्यम होता है, स्वामित्व का अधिकार नहीं।
जस्टिस फरजंद अली की बेंच ने इस मामले में रिपोर्टेबल जजमेंट जारी करते हुए कहा-
“नॉमिनी सिर्फ ट्रस्टी होता है, असली उत्तराधिकारी वही जिसके पक्ष में कानून है।”
साथ ही कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि असली पत्नी कौन है और विवाह वैध है या नहीं, इसका फैसला हाईकोर्ट नहीं करेगा। यह विषय तथ्यों, गवाहों व प्रमाणों की जांच पर आधारित है, जो केवल सिविल कोर्ट में ही तय हो सकता है। इसी आधार पर 2016 से लंबित याचिका को खारिज करने के साथ दोनों पक्षों को सिविल कोर्ट जाने की अनुमति दी गई।
मामला क्या है?
यह विवाद राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम (RSRTC) के रिटायर्ड असिस्टेंट जोनल मैनेजर मूलसिंह देवल की पारिवारिक पेंशन से जुड़ा है।
मूलसिंह देवल 2000 में रिटायर हुए और 2013 में उनका निधन हो गया।
उदयपुर निवासी आनंद कंवर ने दावा किया कि उनके नाम से पीपीओ में पत्नी के रूप में नॉमिनेशन दर्ज है, इसलिए पेंशन उन्हें मिले।
वहीं जयपुर की सायर कंवर ने आपत्ति दर्ज करते हुए कहा कि उनकी शादी 1962 में हुई थी और 1972 के सीपीएफ फॉर्म व राशन कार्ड में भी उनका नाम दर्ज है।
दोनों पक्ष खुद को वैध पत्नी बताकर पेंशन पर दावा जता रहे थे।
⚖️ कोर्ट में हुई बहस
🔻 याचिकाकर्ता का तर्क:
पीपीओ में नाम दर्ज होने के चलते पेंशन रोकना गलत
प्रतिवादी की उत्तराधिकार प्रमाणपत्र याचिका पहले ही खारिज
🔻 प्रतिवादी का तर्क:
पहली शादी के रहते दूसरी शादी अवैध
हिंदू कानून में दो पत्नी की वैधता नहीं
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❗ हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया
> ✔ नॉमिनी संपत्ति/पेंशन का स्वामी नहीं
✔ असली वारिस कानून व विवाह की वैधता से तय होगा
✔ एक समय में दो पत्नियों की मान्यता हिंदू कानून में नहीं
✔ विवाह वैध है या नहीं — यह सिविल कोर्ट तय करेगी
कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम धारा 5 और मिताक्षरा-दायभाग स्कूल का हवाला देते हुए कहा कि एक जीवित पत्नी के रहते दूसरी शादी मान्य नहीं, इसलिए कानूनी पत्नी केवल एक ही मानी जाएगी।
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🏛️ अब आगे क्या?
कोर्ट ने कहा कि दोनों महिलाएं सिविल कोर्ट में दावा पेश करें
निर्देश दिया कि पक्षकार बुजुर्ग हैं, इसलिए मामला एक वर्ष के भीतर निपटाया जाए
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सरकार को सुझाव — नियम स्पष्ट करें
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को सलाह दी कि पेंशन/नॉमिनेशन संबंधी नियमों को अधिक पारदर्शी और स्पष्ट बनाया जाए ताकि भविष्य में ऐसे विवाद न उत्पन्न हों।
📍 यह केस क्यों महत्वपूर्ण?
यह फैसला उन हजारों सरकारी कर्मचारियों के परिवारों के लिए मिसाल है, जहां नॉमिनी और उत्तराधिकारी को लेकर भ्रम रहता है। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि —
नॉमिनी होना हक नहीं देता, असली वारिस कानून तय करेगा।
यह खबर न्यायिक दृष्टि से ऐतिहासिक है, क्योंकि इससे भविष्य में पेंशन व सम्पत्ति विवादों में कानून की स्पष्टता बढ़ेगी और नॉमिनेशन को वैध उत्तराधिकार प्रमाण ना मानने की समझ ध्यान में आएगी।
✍️ वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश बोराणा
सोजत/जोधपुर समाचार अपडेट



