सीता माता के श्राप और आशीर्वाद की अमर गाथा: क्यों गया में नहीं उगती तुलसी?
✍️ वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश बोराणा
वाल्मीकि रामायण में वर्णित एक प्रसंग के अनुसार, माता सीता द्वारा दिया गया श्राप आज भी सत्य साबित होता है। गया तीर्थ की पवित्र भूमि पर तुलसी का न उगना इसी ऐतिहासिक घटना का परिणाम है। यह कथा न केवल पितृ पक्ष की महत्ता को दर्शाती है, बल्कि सत्य और असत्य के परिणामस्वरूप प्राप्त श्राप और आशीर्वाद की गहराई को भी उजागर करती है।
पिंडदान का ऐतिहासिक संदर्भ
वनवास के दौरान भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म के लिए गया धाम पहुंचे। पिंडदान के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने हेतु श्रीराम और लक्ष्मण नगर की ओर चले गए। ब्राह्मण द्वारा समय का दबाव डालने पर सीता जी व्यग्र हो उठीं। उन्होंने अपने ससुर राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए स्वयं पिंडदान करने का निर्णय लिया। फल्गु नदी, वटवृक्ष, गाय, तुलसी, कौआ, और ब्राह्मण को साक्षी मानकर उन्होंने विधिपूर्वक पिंडदान संपन्न किया।
जब श्रीराम और लक्ष्मण लौटे, तो माता सीता ने पिंडदान किए जाने की बात बताई। लेकिन भगवान राम ने इस पर संदेह व्यक्त किया और वहां उपस्थित साक्षियों से सत्य की पुष्टि मांगी।
सत्य और असत्य की परीक्षा
साक्षियों में से फल्गु नदी, गाय, तुलसी, कौआ और ब्राह्मण ने प्रभु राम के भय से झूठ कहा कि सीता ने पिंडदान नहीं किया। केवल वटवृक्ष ने सत्य को स्वीकारा और बताया कि सीता जी ने विधिपूर्वक श्राद्ध कर्म किया।
माता सीता के श्राप
साक्षियों द्वारा झूठ बोलने पर सीता माता ने उन्हें श्राप दिया:
1. फल्गु नदी: आजीवन जल विहीन रहने का श्राप दिया। यही कारण है कि फल्गु नदी गया में नाममात्र की नदी रह गई है।
2. गाय: पूजनीय होने के बावजूद सिर्फ उसके पिछले हिस्से की पूजा होगी।
3. ब्राह्मण: कभी संतुष्ट न होने और हमेशा दरिद्रता में रहने का श्राप दिया।
4. तुलसी: गया की भूमि पर कभी न उगने का श्राप दिया।
5. कौआ: हमेशा लड़-झगड़कर भोजन करने का श्राप दिया।
सत्य के प्रतीक वटवृक्ष को आशीर्वाद
सत्य का साथ देने के लिए माता सीता ने वटवृक्ष को आशीर्वाद दिया कि वह दीर्घायु होगा और पवित्रता का प्रतीक बनकर लोगों को छाया प्रदान करेगा। पतिव्रता स्त्रियां वटवृक्ष की पूजा कर अपने पति की लंबी आयु की कामना करेंगी।
आज भी सत्य है यह गाथा
सीता माता द्वारा दिए गए श्राप और आशीर्वाद के प्रभाव आज भी स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। गया में तुलसी नहीं उगती, फल्गु नदी जलविहीन है, और गाय, कौआ व ब्राह्मण अपने-अपने श्राप का परिणाम भुगत रहे हैं। वहीं, वटवृक्ष सत्य और आशीर्वाद का प्रतीक बनकर श्रद्धालुओं के लिए पवित्र स्थान बना हुआ है।
यह कथा न केवल श्राद्ध कर्म की महत्ता को दर्शाती है, बल्कि सत्य, न्याय और समय की शक्ति का स्मरण भी कराती है। माता सीता का यह प्रसंग हमें यह सिखाता है कि सत्य के साथ खड़ा होना सदा सम्माननीय होता है, जबकि असत्य की राह विनाश की ओर ले जाती है।