भगवान महावीर जन्म कल्याणक महोत्सव आज,कैसा था भगवान महावीर का जीवन और क्या दिए थे उपदेश, जाने सम्पूर्ण जानकारी

ओमप्रकाश बोराणा



चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के दिन समूचा जैन समाज उत्साह के साथ मना रहा है भगवान महावीर स्वामी का जन्म कल्याणक।

जैन समाज के 24वें तीर्थंकर हैं भगवान महावीर स्वामी, जिनका जन्म 2623 साल पहले हुआ था। आज उन्हें वर्धमान, वीर, अतिवीर और सन्मति नामों से भी जाना जाता है।

भगवान महावीर ने पूरे विश्व को सत्य और अहिंसा का पढ़ाया पाठ, धर्म पर चलने वाले 5 सिद्धांत सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य और अस्तेय को उन्होंने बताया। उनका संदेश ‘अहिंसा परमो धर्म:’ और ‘जियो और जीनो दो’ वर्तमान में भी प्रासंगिक है।

आज जैन समाजगण मंदिर में भगवान का अभिषेक और पूजा-अर्चना करेंगे, उसके बाद गाजेबाजे के साथ नगर में निकालेंगे प्रभातफेरी।

भगवान महावीर स्वामी: जैन धर्म के तीर्थंकर

भगवान महावीर स्वामी, जैन धर्म के एक प्रमुख तीर्थंकर थे, जिनका जन्म चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के दिन हुआ था, लगभग 2623 साल पहले। उनका जन्म कैलास पर्वत के राजा सिद्धार्थ और रानी तृषला के घर में हुआ था। बचपन से ही महावीर ने धार्मिक जीवन की ओर ध्यान दिया और अनेक वर्षों तक तपस्या और ध्यान में लगे रहे।

महावीर का जीवन तपस्या, साधना, और धर्म के मार्ग पर चलने का प्रेरणादायक उदाहरण है। उन्होंने अपने जीवन में अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य और अस्तेय के पाँच महाव्रतों का पालन किया और लोगों को इन्हें अपने जीवन में शामिल करने की प्रेरणा दी।

उनकी ध्यान और तपस्या ने उन्हें समस्त भव्य और सुखद भावनाओं से परे, समय-समय पर अपने शारीरिक आवश्यकताओं का अनुभव कराया। महावीर का जीवन एक सशक्त और शांतिप्रिय धर्म के प्रेरणास्त्रोत है, जो समाज को धार्मिक और आध्यात्मिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

भगवान महावीर के जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू उनका समाज में अहिंसा और समरसता के प्रचार और प्रसार करना था। उन्होंने अपने उपदेशों के माध्यम से समाज को धार्मिक और नैतिक उत्थान के लिए प्रेरित किया और लोगों को स्वार्थ के परे उच्चतम आदर्शों की ओर प्रेरित किया।

महावीर स्वामी का जीवन एक उदाहरण है जो हमें धर्म, साधना और समाज सेवा में समर्पित रहने की प्रेरणा देता है। उनके जीवन के उपदेश और मूल्यों को समझकर हम समाज में शांति, समरसता, और प्रेम की भावना को बढ़ावा दे सकते हैं। उनकी शिक्षाएँ हमें संयम, सहयोग, और समाधान की ओर ले जाती हैं, जो एक उत्तम समाज की नींव होती है।

भगवान महावीर जयंती: कैसा था भगवान महावीर का जीवन और क्या दिए थे उपदेश, जाने सम्पूर्ण जानकारी

भगवान महावीर स्वामी जैन धर्म के अंतिम और 24वें तीर्थंकर थे। उनका जन्म लगभग 599 ईसा पूर्व, वैशाली के गणतंत्र राज्य क्षत्रिय कुण्डलपुर में हुआ था। उनके पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशला देवी था। बचपन में उनका नाम वर्धमान था, और वे अपने साहस, तेजस्विता, ज्ञान की पिपासा और अत्यंत बलशाली होने के कारण ‘महावीर’ कहलाए।

*प्रारंभिक जीवन और तपस्या*
महावीर स्वामी ने अपने प्रारंभिक तीस वर्ष राजसी वैभव में बिताए। 30 वर्ष की आयु में उन्होंने गृह त्याग किया और तपस्या में लीन हो गए। उन्होंने अपने तपस्वी जीवन के 12 वर्ष घोर तपस्या में बिताए और इस दौरान उन्होंने अपने वस्त्र तक त्याग दिए। उनकी कठोर तपस्या के बाद, 42 वर्ष की उम्र में उन्हें ‘कैवल्य ज्ञान’ प्राप्त हुआ, जिसे सर्वज्ञता भी कहा जाता है।

*महावीर स्वामी के उपदेश*
महावीर स्वामी ने अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) और ब्रह्मचर्य के पंचशील सिद्धांतों का प्रचार किया। उनके उपदेशों में सबसे महत्वपूर्ण था अहिंसा का सिद्धांत, जिसे उन्होंने सबसे उच्चतम नैतिक गुण बताया। उन्होंने समाज में फैली हिंसा, पशुबलि, और जातिगत भेदभाव की कड़ी निंदा की और लोगों को प्रेम और सहयोग का मार्ग दिखाया।

उनके उपदेशों में ‘जियो और जीने दो’ का संदेश भी शामिल है, जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है। उनकी शिक्षाएँ आज भी विश्व शांति और सद्भाव के लिए मार्गदर्शक हैं।

महावीर स्वामी का जीवन और उनके उपदेश हमें यह सिखाते हैं कि आत्म-संयम, त्याग और अहिंसा के मार्ग पर चलकर ही हम सच्ची खुशी और शांति प्राप्त कर सकते हैं। उनकी शिक्षाएँ आज भी हमें एक बेहतर समाज और एक बेहतर दुनिया की ओर ले जाने का प्रेरणा स्रोत हैं।

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