विशेष टिप्स: रवि प्रदोष व्रत का आजार, तनाव, और संकटों से निवृत्ति का अच्छा उपाय हो सकता है। यहां हम आपको इस व्रत के महत्व, पूजन विधि, और शुभ मुहूर्त के बारे में जानकारी प्रदान कर रहे हैं।
विस्तार से:
वैदिक पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 20 अप्रैल को रात 10 बजकर 48 मिनट पर शुरू होगी और 21 अप्रैल को रात 12 बजकर 39 मिनट पर समाप्त होगी। इस दिन को “रवि प्रदोष व्रत” के रूप में मनाया जाएगा। इस व्रत का महत्व है कि इसकी पूजा शाम के समय की जाती है, जिसलिए अप्रैल माह का आखिरी प्रदोष 21 अप्रैल को रखा जाएगा और यह दिन रविवार को पड़ रहा है, इसलिए इसे “रवि प्रदोष व्रत” कहा जाएगा।
शुभ मुहूर्त:
रवि प्रदोष व्रत के दिन, भगवान शिव की अराधना की जाती है। पूजा का शुभ मुहूर्त 21 अप्रैल को शाम 6 बजकर 51 मिनट से लेकर रात 9 बजकर 2 मिनट तक रहेगा।
शुभ योग:
इस व्रत पर “सर्वार्थ सिद्धि योग” दिन भर है। रवि योग का निर्माण संध्याकाल से हो रहा है, जो अगले दिन सुबह समाप्त होगा। अमृत सिद्धि योग का निर्माण भी इसी समय में हो रहा है।
पूजन विधि:
- तांबे के लोटे में जल और शक्कर डालकर सूर्य को अर्घ्य दें।
- भगवान शिव के मंत्र “नमः शिवाय” का जाप करें।
- प्रदोष काल में शिव जी को पंचामृत से स्नान करवाएं।
- साबुत चावल की खीर और फल भगवान शिव को अर्पित करें।
- आसन पर बैठकर “ॐ नमः शिवाय” के मंत्र या “पंचाक्षरी स्तोत्र” का 5 बार पाठ करें।
महत्व:
रवि प्रदोष व्रत में भगवान शिव प्रसन्न मुद्रा में होते हैं और इसलिए उनका पूजन किया जाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस व्रत को रखने से जीवन में आने वाले संकटों का समाधान होता है और निरोगी काया का आशीर्वाद मिलता है।
यह व्रत भगवान शिव के भक्तों के लिए एक महत्वपूर