सोजत न्यूज़ वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश बोराणा

उज्जैन जिले के खाचरौद तहसील में हैरान कर देने वाला मामला, बेटी को मृत मानकर छपवाए शोक पत्र
मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले के खाचरौद तहसील के ग्राम घुड़ावन में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां एक परिवार ने अपनी जिंदा बेटी का पिंडदान कर मृत्यु भोज तक का आयोजन कर दिया। यह कदम परिवार ने बेटी के अंतरजातीय विवाह से आहत होकर उठाया। इतना ही नहीं, परिवार ने बेटी की ‘मृत्यु’ की सूचना देने वाले शोक पत्र भी छपवाए, जो अब सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहे हैं।
कैसे शुरू हुआ मामला?
घटना के अनुसार, वर्दीराम गरगामा की बेटी मेघा गरगामा ने अपने प्रेमी दीपक बैरागी (पुत्र मदनलाल बैरागी, निवासी घिनोदा) के साथ भागकर शादी कर ली। इस शादी से आहत परिवार ने बेटी के अपहरण की शिकायत पुलिस में दर्ज कराई। पुलिस ने छानबीन कर दोनों को खोज निकाला और थाने ले आई।
बेटी ने माता-पिता को पहचानने से किया इनकार
जब पुलिस ने मेघा को उसके माता-पिता से मिलाने की कोशिश की, तो उसने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया। परिवार के तमाम समझाने के बावजूद वह दीपक के साथ रहने की जिद पर अड़ी रही। बेटी के इस व्यवहार से आहत परिजनों ने उसे मृत मानने का फैसला कर लिया।
शोक पत्र छपवाकर किया पिंडदान और मृत्यु भोज
बेटी के घर छोड़ने और अंतरजातीय विवाह करने से नाराज गरगामा परिवार ने 16 मार्च 2025 को पूरे समाज को आमंत्रित कर उसकी अंतिम क्रियाएं पूरी कर दीं।
- परिवार ने बाकायदा शोक पत्र छपवाए और गांव में बांटे।
- बेटी की आत्मा की शांति के लिए विधि-विधान से पिंडदान किया।
- मृत्यु भोज का आयोजन कर समाज के लोगों को बुलाकर खाना खिलाया।
गांव में हो रही चर्चा, सोशल मीडिया पर वायरल हुआ मामला
बेटी के खिलाफ उठाए गए इस कदम की चर्चा अब पूरे गांव में हो रही है। वहीं, परिवार द्वारा बांटे गए शोक पत्र की तस्वीरें सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही हैं। कई लोग इसे रूढ़िवादी सोच का प्रतीक मान रहे हैं, जबकि कुछ इसे परिवार की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली घटना कह रहे हैं।
सवाल जो इस घटना से उठते हैं
- क्या बेटी के अपने जीवनसाथी चुनने का अधिकार नहीं है?
- परिवार का यह कदम सही है या फिर अतिreaktion?
- क्या समाज में आज भी जातिवाद इतनी गहरी जड़ें जमाए हुए है कि एक लड़की के फैसले को परिवार उसकी ‘मृत्यु’ मान ले?
यह मामला सिर्फ एक गांव या परिवार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज में फैली जातिगत मानसिकता और परिवारिक परंपराओं के टकराव का एक उदाहरण बन गया है।