✍️ वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश बोराणा

जयपुर/सोजत।
राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार के कार्यकाल में नगर निकायों द्वारा जारी किए गए 13 लाख पट्टों की जांच अब भाजपा सरकार जुलाई माह से शुरू करने जा रही है। यह जांच 19 माह से लंबित थी, जिसका प्रमुख कारण नगरीय निकायों में 50 प्रतिशत पदों का खाली होना बताया गया है। लेकिन अब यूडीएच विभाग की सक्रियता के चलते इसे प्राथमिकता पर लेते हुए जल्द शुरुआत की जा रही है।
राज्य के नगरीय विकास मंत्री झाबरसिंह खर्रा ने पुष्टि की है कि विभाग को जल्द ही RPSC के माध्यम से नए एक्जीक्यूटिव और रेवेन्यू ऑफिसर्स मिलने वाले हैं, जिसके बाद जांच अभियान को गति दी जाएगी।
अब तक सामने आ चुके हैं 400 से अधिक फर्जी पट्टे
हाल ही में कुछ नगर निकायों में की गई आंतरिक जांच में 400 से अधिक फर्जी पट्टों की पुष्टि हुई थी। इससे स्पष्ट संकेत मिले कि गहलोत सरकार के कार्यकाल में कई जगहों पर राजनीतिक दबाव और भ्रष्टाचार के चलते अनियमित तरीके से पट्टे बांटे गए थे।
विधानसभा में उठा था मुद्दा, विपक्ष ने किया था सरकार को घेरने का प्रयास
21 मार्च 2025 को विधानसभा सत्र के दौरान विपक्ष ने सरकार को फर्जी पट्टों के मुद्दे पर घेरा था। उस समय मंत्री खर्रा ने सदन में बताया था कि फरवरी तक 14 फर्जी पट्टों का पता चल चुका है और जांच प्रक्रिया जारी है। उन्होंने स्पष्ट कहा था कि “गलत करने वालों को नहीं छोड़ा जाएगा।”
पूर्व यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल ने भी इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी थी और यहां तक कहा था कि “फर्जी पट्टों की जांच से कोई इनकार नहीं कर सकता, दोषियों को जेल में डालो।”
नई गाइडलाइन: अब निरस्त पट्टे पर कारण भी अंकित करना होगा
यूडीएच विभाग ने इस पूरे मामले को ध्यान में रखते हुए एक बड़ा फैसला लिया है। अब राज्य के सभी प्राधिकरणों, यूआईटी और नगर निकायों को यह अधिकार दिया जा रहा है कि वे तीन वर्ष या उससे अधिक पुराने, अपंजीकृत पट्टों को निरस्त कर सकें। साथ ही जिन पट्टों पर स्टांप ड्यू है, उन्हें निरस्त कर नए नियमों के तहत पट्टा जारी किया जाएगा।
मंत्री झाबरसिंह खर्रा ने स्पष्ट किया कि यह नया आदेश भी गहलोत शासनकाल के फर्जी पट्टों की जांच से जुड़ा एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। इसके अंतर्गत यह अनिवार्य किया गया है कि किसी भी निरस्त पट्टे के साथ निरस्तीकरण का कारण भी स्पष्ट रूप से अंकित किया जाए।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
शहरी प्रशासन से जुड़े जानकारों का कहना है कि 13 लाख पट्टों की जांच एक विस्तृत और समय लेने वाली प्रक्रिया है। यह केवल राजनीतिक या प्रशासनिक मामला नहीं है, बल्कि इससे हजारों लोगों की ज़मीन, मकान और कानूनी वैधता भी जुड़ी हुई है।
यदि जांच निष्पक्ष और निष्पादनात्मक ढंग से होती है तो यह राज्य के शहरी प्रशासन में पारदर्शिता की दिशा में ऐतिहासिक कदम साबित हो सकता है। लेकिन यह भी जरूरी है कि सरकार जांच के साथ-साथ पीड़ित या निर्दोष लोगों को राहत देने की योजना भी बनाए।
क्या होगा आगे?
जांच की शुरुआत से पहले ही राजनीतिक बयानबाज़ी तेज हो चुकी है। लेकिन असली कसौटी तब होगी जब इन पट्टों की जांच मूल दस्तावेजों, ज़मीनी हकीकत और नियमानुसार की जाए। क्या जांच निष्पक्ष होगी? क्या दोषी अधिकारी या जनप्रतिनिधि सामने लाए जाएंगे? क्या बेगुनाह लोगों को राहत मिलेगी?
इन तमाम सवालों के जवाब आने वाले कुछ महीनों में मिलेंगे।
📌 खास बातें संक्षेप में:
- गहलोत सरकार के समय बांटे गए 13 लाख पट्टों की जांच जुलाई से
- निकायों में 50% पद खाली, फिर भी जांच तेज करने के निर्देश
- अब तक 400 से अधिक फर्जी पट्टे पकड़े गए
- अपंजीकृत पट्टों को निरस्त कर नए नियमों से दिए जाएंगे पट्टे
- निरस्त पट्टे पर कारण दर्ज करना अनिवार्य होगा
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