✍️ वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश बोराणा
जयपुर। मंदिर में गंगाजल से शुद्धिकरण विवाद पर भाजपा से निलंबित किए गए पूर्व विधायक ज्ञानदेव आहूजा ने पार्टी को जवाब भेज दिया है। उन्होंने अपने जवाब में स्पष्ट लिखा है कि “ज्ञानदेव ने न कभी माफी मांगी है और न ही कभी मांगेगा।” उन्होंने दलितों के खिलाफ किसी भी तरह की भावना से इनकार किया है और खुद को हमेशा दलितों का रक्षक बताया है। इस जवाब के बाद भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ ने दो टूक कह दिया है कि अब कठोर कार्रवाई होगी।
आहूजा का स्पष्ट संदेश: ‘मैं दलित विरोधी नहीं, कांग्रेस विरोधी हूं’
पूर्व विधायक ज्ञानदेव आहूजा ने भाजपा प्रदेश संगठन महामंत्री एवं भीलवाड़ा सांसद दामोदर अग्रवाल को भेजे जवाब में लिखा,
“मैं छुआछूत को कभी पसंद नहीं करता और ना ही मैं दलित विरोधी हूं। मैंने राम मंदिर में कांग्रेस के नेताओं के आने पर विरोध किया था, न कि किसी दलित के खिलाफ। मैंने हमेशा मेवात में दलितों की रक्षा की है और उनके साथ खड़ा रहा हूं।”
आहूजा ने दोहराया कि उन्होंने कोई गलती नहीं की है और उनका विरोध केवल कांग्रेस के नेताओं को लेकर था।
राठौड़ का जवाब- पार्टी सख्त रुख पर कायम, अब होगी कड़ी कार्रवाई
भाजपा प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ ने कहा कि पार्टी ने पहले ही आहूजा को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया था। अब जब उनका जवाब आ गया है, तो उस पर गहन अध्ययन कर आगे की कार्रवाई की जाएगी।
“हमारी पार्टी किसी भी जाति, वर्ग या समुदाय के खिलाफ किसी भी प्रकार की टिप्पणी को स्वीकार नहीं करती। चाहे नेता बड़ा हो या छोटा, संविधान और पार्टी के नियमों के विरुद्ध कोई भी बयान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”
राठौड़ ने यह भी जोड़ा कि हर नेता को यह याद रखना चाहिए कि उन्हें सार्वजनिक रूप से बोलते समय संविधान और सामाजिक मर्यादाओं का ध्यान रखना चाहिए।
तीन दिन में मांगा गया था जवाब
गौरतलब है कि 8 अप्रैल को गंगाजल छिड़काव विवाद सामने आने के बाद भाजपा ने तत्काल आहूजा को पार्टी से निलंबित करते हुए तीन दिन में जवाब मांगा था। यह विवाद तब गहराया जब नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली के मंदिर में प्रवेश के बाद गंगाजल से शुद्धिकरण किया गया।
यह मामला कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन तक पहुंच गया था, जहां मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी ने इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया था। कांग्रेस ने इसके विरोध में प्रदर्शन भी किया।
राजनीतिक माहौल गरमाया, भाजपा की साख पर सवाल
इस पूरे मामले ने भाजपा को न सिर्फ रक्षात्मक मुद्रा में ला खड़ा किया है, बल्कि दलित समाज में नाराजगी भी देखने को मिल रही है। आहूजा के स्पष्ट रूप से माफी न मांगने की बात ने पार्टी नेतृत्व के लिए असहज स्थिति खड़ी कर दी है।
अब देखना होगा कि भाजपा आंतरिक अनुशासन के तहत ज्ञानदेव आहूजा के खिलाफ किस प्रकार की कठोर कार्रवाई करती है, और यह मुद्दा आगामी राजनीतिक समीकरणों को कितना प्रभावित करता है।