✍️ वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश बोराणा
जयपुर। राजस्थान में पंचायतीराज संस्थाओं के पुनर्गठन का बड़ा कदम उठाया गया है। अब प्रदेश में ग्राम पंचायतों, पंचायत समितियों और जिला परिषदों की संख्या में वृद्धि होगी। 28 दिसंबर 2024 को कैबिनेट द्वारा लिए गए फैसले के बाद पंचायती राज विभाग ने पुनर्गठन की प्रक्रिया शुरू कर दी है। यह कदम न केवल प्रशासनिक ढांचे को बदलने वाला है, बल्कि अधिक लोगों को नेतृत्व का अवसर भी प्रदान करेगा।
41 जिलों में नए जिला परिषदों का गठन
गहलोत सरकार द्वारा हाल ही में 9 जिलों को समाप्त कर 41 जिलों का नया स्वरूप तैयार किया गया है। इन जिलों में अब नई जिला परिषदें बनेंगी, जिनमें बालोतरा, ब्यावर, डीग, डीडवाना-कुचामन, कोटपूतली-बहरोड़, खैरथल-तिजारा, फलोदी, और सलूंबर शामिल हैं। पहले प्रदेश में 33 जिला परिषदें थीं, लेकिन अब इनकी संख्या बढ़ाकर 41 हो जाएगी।
25 ग्राम पंचायतों पर बनेगी पंचायत समिति
अब तक 40 ग्राम पंचायतों पर एक पंचायत समिति बनाई जाती थी, लेकिन नए मापदंड के अनुसार 25 ग्राम पंचायतों पर एक पंचायत समिति बनेगी। जनसंख्या के मानकों में भी बदलाव किया गया है:
सामान्य क्षेत्रों में अब 3000 की न्यूनतम जनसंख्या पर एक ग्राम पंचायत बनेगी (पहले यह 4000 थी)।
अधिकतम जनसंख्या सीमा 6500 से घटाकर 5500 कर दी गई है।
रेगिस्तानी और आदिवासी क्षेत्रों में 2000 की आबादी पर भी ग्राम पंचायत का गठन होगा।
वन स्टेट-वन इलेक्शन का रास्ता साफ
इस पुनर्गठन से राज्य में वन स्टेट-वन इलेक्शन की दिशा में बड़ी प्रगति हुई है। पंचायत और शहरी निकायों के चुनाव अब एक साथ कराए जा सकेंगे। जनवरी 2025 में होने वाले पंचायत चुनाव, पुनर्गठन प्रक्रिया के चलते 6 से 8 महीने तक टाले जा सकते हैं। संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार, पंचायत चुनाव हर 5 साल में कराना अनिवार्य है। हालांकि पुनर्गठन के कारण चुनाव टालने का सरकार के पास मजबूत तर्क है।
पुनर्गठन से क्या बदलेगा?
1. अधिकारियों और नेताओं की संख्या में वृद्धि: सरपंच, प्रधान, और जिला प्रमुखों की संख्या बढ़ने से अधिक लोगों को नेतृत्व का अवसर मिलेगा।
2. वोटर लिस्ट का पुनर्निर्माण: पुनर्गठन के बाद नई वोटर लिस्ट तैयार की जाएगी।
3. प्रशासनिक लाभ: छोटे जनसंख्या मानदंडों से प्रशासनिक कामकाज में तेजी आएगी।
नए बदलावों से बढ़ेगी क्षेत्रीय भागीदारी
पंचायतीराज ढांचे के इस बदलाव से ग्रामीण क्षेत्रों में विकास की गति तेज होगी। अधिक पंचायतों और समितियों के गठन से स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने की क्षमता बढ़ेगी। सरकार का यह कदम प्रशासनिक सुधार की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।