✍️ वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश बोराणा

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि जो बच्चे अपने माता-पिता की सेवा नहीं करते, उनसे माता-पिता द्वारा उपहार में दी गई संपत्ति वापस ली जा सकती है। यह फैसला बुजुर्गों के हितों के संरक्षण के लिए 2007 में बने कानून की व्याख्या करते हुए सुनाया गया।
मध्य प्रदेश का मामला: बेटे से गिफ्ट डीड रद्द
मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मां की तरफ से बेटे को दी गई गिफ्ट डीड को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने बेटे को आदेश दिया है कि वह 28 फरवरी तक मां को उनकी संपत्ति पर कब्जा सौंप दे। यह मामला एक उदाहरण बन गया है कि माता-पिता के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून कितना प्रभावी हो सकता है।
2007 के कानून की धारा 23 की व्याख्या
सुप्रीम कोर्ट ने बुजुर्गों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 की धारा 23 का हवाला देते हुए कहा कि:
यदि कोई वरिष्ठ नागरिक अपनी संपत्ति उपहार या किसी अन्य तरीके से इस शर्त पर देता है कि संपत्ति पाने वाला उनकी देखभाल करेगा, और वह इस शर्त का पालन नहीं करता, तो यह माना जाएगा कि संपत्ति का ट्रांसफर धोखाधड़ी या दबाव के तहत हुआ है।
ऐसी स्थिति में ट्रिब्यूनल को यह अधिकार है कि वह उस संपत्ति के ट्रांसफर को रद्द कर सकता है।
बुजुर्गों के अधिकारों की सुरक्षा
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले के जरिए यह संदेश दिया है कि बुजुर्गों की उपेक्षा किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं की जाएगी। माता-पिता, जिन्होंने अपनी संपत्ति बच्चों को उपहार में दी है, अगर उनका ध्यान नहीं रखा जाता तो वे उस संपत्ति को वापस ले सकते हैं।
फैसले का समाज पर प्रभाव
यह फैसला समाज में बुजुर्गों की स्थिति को मजबूत करने और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय उन बच्चों के लिए चेतावनी है जो माता-पिता की सेवा और देखभाल करने में असफल रहते हैं।
बुजुर्गों की अपील
यह फैसला ऐसे समय में आया है जब बुजुर्गों की उपेक्षा और उनके साथ दुर्व्यवहार के मामले बढ़ते जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वरिष्ठ नागरिकों की भलाई और उनका सम्मान सुनिश्चित करना सभी की जिम्मेदारी है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला माता-पिता और बुजुर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए मील का पत्थर है। यह बच्चों को