नई दिल्ली/कोटा: देशभर में छात्रों की आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं, लेकिन कोटा को लेकर बनाई जा रही धारणा वास्तविक आंकड़ों से मेल नहीं खाती। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, हर 40 मिनट में एक छात्र आत्महत्या कर रहा है, जो भारत में एक गंभीर सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य संकट को दर्शाता है। हालांकि, राजस्थान में आत्महत्या की दर राष्ट्रीय औसत से कम है, और कोटा कोचिंग हब को दोषी ठहराना पूरी तरह से गलत साबित हो रहा है।
राजस्थान में आत्महत्या की दर राष्ट्रीय औसत से कम
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, राष्ट्रीय आत्महत्या दर 12.4 प्रति लाख व्यक्ति है, जबकि राजस्थान में यह 6.6 प्रति लाख व्यक्ति है, जो कि राष्ट्रीय औसत से काफी कम है। यह तथ्य इस धारणा को खारिज करता है कि राजस्थान, विशेष रूप से कोटा, आत्महत्याओं के मामले में अग्रणी है।

छात्र आत्महत्या के असली आंकड़े: कोटा नहीं, इन राज्यों में है सबसे ज्यादा मामले
छात्र आत्महत्या में महाराष्ट्र शीर्ष पर, राजस्थान 10वें स्थान पर
देश में सबसे अधिक छात्र आत्महत्याओं की घटनाएं महाराष्ट्र में दर्ज की गई हैं, जहां देश के कुल छात्र आत्महत्या मामलों का 14% हिस्सा है। इसके बाद तमिलनाडु और मध्य प्रदेश का स्थान आता है। राजस्थान इस सूची में दसवें स्थान पर है, जिससे स्पष्ट होता है कि यहां की स्थिति उतनी गंभीर नहीं है जितनी बताई जा रही है।
कोटा कोचिंग हब को लेकर मिथक और सच्चाई
कोटा शहर, जिसे देश के सबसे बड़े कोचिंग हब के रूप में जाना जाता है, अक्सर छात्रों की आत्महत्या के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है। लेकिन 2024 में कोटा में छात्र आत्महत्या के मामलों में 40% की कमी आई है।
आंकड़ों के अनुसार, पिछले 10 वर्षों में कोटा में कुल 127 छात्रों ने आत्महत्या की, जबकि मुंबई, दिल्ली, चेन्नई, कानपुर, नागपुर, हैदराबाद, अहमदाबाद, सूरत, इंदौर, भोपाल और पुणे जैसे शहरों में छात्र आत्महत्याओं की संख्या कोटा से कहीं अधिक है।
हाल ही में जारी ‘स्टूडेंट सुसाइड – एन एपिडेमिक स्वीपिंग इंडिया’ रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दो दशकों में देश में आत्महत्याओं की दर 2% वार्षिक दर से बढ़ी है, जबकि छात्रों में आत्महत्या की दर 4% वार्षिक दर से बढ़ रही है। यह शिक्षा प्रणाली की बढ़ती प्रतिस्पर्धा और छात्रों पर बढ़ते मानसिक दबाव को उजागर करता है।
छात्र आत्महत्या के पीछे क्या कारण?
विशेषज्ञों के अनुसार, छात्रों द्वारा आत्महत्या करने के पीछे कई कारक जिम्मेदार होते हैं:
- बढ़ती प्रतिस्पर्धा: छात्र लगातार उच्च अंक और बेहतर रैंक हासिल करने के दबाव में रहते हैं।
- अभिभावकों की उम्मीदें: माता-पिता का अत्यधिक दबाव भी कई बार बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
- तनाव प्रबंधन की कमी: अधिकतर छात्र तनाव प्रबंधन के सही तरीकों से अनभिज्ञ होते हैं।
- भावनात्मक समर्थन की कमी: परिवार और दोस्तों से उचित भावनात्मक सहयोग न मिलने पर छात्र अवसादग्रस्त हो जाते हैं।
समाधान: छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने की जरूरत
विशेषज्ञों का मानना है कि छात्रों की आत्महत्या की समस्या को हल करने के लिए सभी हितधारकों (stakeholders) को मिलकर काम करना होगा। इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
1. अभिभावकों की भूमिका:
- माता-पिता को बच्चे की क्षमताओं और रुचि के अनुसार करियर का चुनाव करने में मदद करनी चाहिए।
- परीक्षा और रैंक के बजाय सीखने की प्रक्रिया पर जोर देना चाहिए।
- बच्चों को तनाव प्रबंधन के तरीके सिखाने चाहिए ताकि वे दबाव को सहन कर सकें।
2. स्कूल और कोचिंग संस्थानों की जिम्मेदारी:
- कोचिंग संस्थानों और स्कूलों को छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना होगा।
- जो छात्र पढ़ाई में पिछड़ रहे हैं या क्लास में नियमित नहीं आ रहे हैं, उनके लिए काउंसलिंग सत्र आयोजित किए जाने चाहिए।
- मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट्स की सहायता ली जानी चाहिए ताकि छात्रों को उचित मार्गदर्शन मिल सके।
3. हॉस्टल प्रशासन की भूमिका:
- हॉस्टल में रहने वाले छात्रों के व्यवहार में बदलाव को पहचानना जरूरी है।
- हॉस्टल वार्डन, मैस संचालक और कर्मचारी यदि किसी छात्र में तनाव या अवसाद के लक्षण देखते हैं, तो उसे तुरंत सहायता प्रदान करनी चाहिए।
4. समाज में बदलाव की जरूरत:
- हमें असफलता को स्वीकार करने और उससे सीखने की संस्कृति को बढ़ावा देना होगा।
- असफलता को अंत नहीं, बल्कि सफलता के मार्ग का एक हिस्सा समझना चाहिए।