
*माह-ए-रमजान 2025 शुरू – रोजा, इबादत का विशेष महत्व*
अयूब के सिलावट बालोतरा
बालोतरा: पाक-पवित्र रमजान के, मुबारक और मुकद्दस माह 1 मार्च को चांद नजर आने पर, 2 मार्च को पहला रोजा की शुरुआत l पहली तराबीह की नमाज – शनिवार को व माहे रमजान का पहला रोजा रविवार को। रविवार की रोज पहले रोजे की खत्म सेहरी अलसुबह 5:40 व रोजा इफ्तार सायं 6:45 बजे।
माह-ए-रमजान इस्लाम के पवित्र महीने में है, जो शाबान के बाद आता है l रमजान का इंतजार मुस्लिम समुदाय को सालभर रहता है l रमजान के महीने में इबादत का विशेष महत्व है l रमजान के दौरान रोजे रखने के साथ पांचों वक्त की नमाज, तरावीह, इबादत, जकात, सदका आदि का विशेष महत्व है l इस महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग सूर्योदय से सूर्यास्त तक कुछ नहीं खाते-पीते हैं। इसके बाद शाम में रोजा खोलते (इफ्तार) हैं। इसी महीने के अंत में ईद-उल-फितर का त्योहार मनाया जाता है, जो उपवास के समापन का जश्न है l
रमजान के पूरे एक माह को 30 रोजे में बांटा जाता है और इसके तीन प्रमुख हिस्से होते हैं। पहले अशरा 10 दिन, दूसरा अशरा 10 दिन और तीसरा अशरा 10 दिन। पहला अशरा 10 दिन ‘रहमत’ का, दूसरा अशरा 10 दिन ‘बरकत’ का, तीसरा अशरा 10 दिन ‘मगफिरत’ का होता है। रोजा रखते हैं, उनके लिए यह बेहद खास समय होता है। इस दौरान नमाज अदा करना, जकात, सदका आदि करना बहुत ही जरूरी होता है।
*रमजान में रोजा का विशेष महत्व-*
रमजान के महीने में इबादत का विशेष महत्व है। रमजान के दौरान रोजे रखने के साथ पांचों वक्त की नमाज और तरावीह की विशेष नमाज का महत्व है। रमजान का पाक महीना रोजा रखने के साथ साथ आत्मसंयम, इबादत और जरूरतमंदों की मदद और सेवा करने का बेहतरीन मौका देता है। रोजा आत्म संयम व आत्म सुधार का प्रतीक रोजे के दौरान संयम का तात्पर्य है कि आंख, नाक, कान, जुबान इत्यादि अर्थात संपूर्ण शरीर और मन को नियंत्रण में रखा जाना क्योंकि रोजे के दौरान बुरा नहीं सुनना, बुरा नहीं देखना, बुरा नहीं बोलना और न ही बुरा एहसास किया जाता है। इस तरह से रमजान के रोजे मुस्लिम समुदाय को उनकी धार्मिक श्रद्धा के साथ-साथ बुरी आदतों को छोड़ने के अलावा आत्म संयम रखना सिखाते हैं। इन दिनों में मुसलमान जितना नेक काम करता है, जरूरतमंदों की मदद करता है, उन्हें दान देता है, लोगों के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करता है। अल्लाह अपने उन बाशिंदों पर अपनी रहमत की बारिश फरमाते है।