वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश बोराणा के साथ अकरम खान कि रिपोर्ट।
सोजत। होली के दूसरे दिन सोजत शहर में पारंपरिक गैर नृत्य की धूम रही। सफेद धोती-कुर्ते के ऊपर रंग-बिरंगी चमचमाती जैकेट, सिर पर साफा, पैरों में घुंघरू बांधे और हाथों में लाठी-छतरी लिए गैरिए जब मस्ती में झूमते हुए निकले, तो पूरे शहर की फिजा उल्लास से भर उठी। ढोल-थाली और चंग की धमाकेदार थाप पर नाचते गैरियों के बीच उड़ता गुलाल देखते ही बनता था।
ऐतिहासिक दुर्ग पर उमड़ा जनसैलाब

दोपहर बाद सोजत के ऐतिहासिक दुर्ग में स्थित मंदिर में हर साल की तरह इस बार भी भव्य मेला लगा। शहर के अलग-अलग मोहल्लों कि गैरे नाचते-गाते, गुलाल उड़ाते हुए दुर्ग पहुंचे और माता जी के मंदिर में पूजा-अर्चना की। इस मौके पर मालियों के बड़ा बास की गैर, घांची समाज की गैर, सिरवी समाज की गैरो सहित अन्य समाजों की गैरों ने अपनी परंपरागत नृत्य कला का प्रदर्शन करते हुए दुर्ग पहुची।
गैरिए अपने निर्धारित मार्गों से चारभुजा मंदिर होते हुए कोट मोहल्ले से ऐतिहासिक दुर्ग पहुँचे। हर गली-मोहल्ले और बाजार मै पुष्प वर्षा कर लोगों ने विभिन्न समाजो कि गैरो और उनके साथ चल रहे समाजो के चौधरीयो और पंचो का स्वागत किया और उन पर गुलाल बरसाया। जैसे-जैसे गैरिए आगे बढ़ते गए, माहौल और भी रंगीन होता चला गया।

गुलाल और चंग कि थाप से सराबोर हुआ सोजत
गैरों की मस्ती और ढोल-चंग की थाप से पूरा शहर झूम उठा। दुर्ग पर हजारों की संख्या में लोग यह नजारा देखने पहुंचे। हर ओर गुलाल उड़ता नजर आया और शहर का माहौल पूरी तरह होली के रंग में रंग गया।

सोजत मे विभिन्न समाजो कि गैरे हर साल धुलन्डी वाले दिन दोपहर बाद दुर्ग पहुच कर परंपरा के अनुसार पुजा करती है हर साल होली के बाद पूरे जोश और उत्साह के साथ इस परंपरा को मनाया जाता है, जिसमें स्थानीय लोग और श्रद्धालु बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं गैरो के दुर्ग पहुचने के नजारे का भरपूर आनंद लेते है।