वरिष्ठ पत्रकार चेतनजी व्यास कि रिपोर्ट।
सोजत, 1 अप्रैल – अपर जिला न्यायाधीश दिनेश कुमार गढ़वाल द्वारा दिए गए एक ऐतिहासिक फैसले में 10 वर्ष पूर्व सोजत के युवा नेता, मेहंदी उद्यमी और समाजसेवी नरेंद्र टांक (गुड्डू सा) की मृत्यु के मामले में उनके परिजनों को 44 लाख 10 हजार 480 रुपए का मुआवजा देने का निर्णय सुनाया गया है। न्यायालय ने नगर पालिका को यह राशि दो माह के भीतर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, इंडस्ट्रियल एरिया शाखा में जमा कराने के निर्देश दिए हैं।
क्या था मामला?
21 मई 2015 को दिन में 11:45 बजे नरेंद्र टांक अपने घर जा रहे थे, तभी सड़क पर दो सांड आपस में लड़ रहे थे। इसी दौरान टांक उनकी चपेट में आ गए और गंभीर रूप से घायल हो गए। इलाज के लिए उन्हें अस्पताल ले जाया गया, लेकिन चोटें गंभीर होने के कारण उन्हें जोधपुर रेफर किया गया, जहां उपचार के दौरान उनकी मृत्यु हो गई।
नरेंद्र टांक, जो विश्व हिंदू परिषद से भी जुड़े हुए थे, उनकी अंतिम यात्रा में सैकड़ों लोग शामिल हुए थे। उनकी पत्नी ज्योति टांक, पुत्र कुणाल एवं पुत्री भूमिका ने फेटल एक्सीडेंट एक्ट के तहत नगर पालिका अधिशासी अधिकारी, नगर पालिका अध्यक्ष, स्वायत्त शासन विभाग सचिव एवं जिलाधीश को प्रतिवादी बनाते हुए मुआवजे की मांग की थी।
वकीलों की भूमिका
इस प्रकरण में वादीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता गजेंद्र दवे एवं भगवती प्रसाद चौहान ने पैरवी की, जबकि प्रतिवादी गण की ओर से चंद्रशेखर श्रीमाली एवं राजकीय अभिभाषक पंकज त्रिवेदी ने पैरवी की।
नगर पालिका का पक्ष
प्रतिवादियों की ओर से नगर पालिका अध्यक्ष एवं अधिशासी अभियंता ने दावा किया कि सोजत नगर पालिका क्षेत्र में आवारा पशु, गाय या सांड हैं ही नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि नरेंद्र टांक की मृत्यु कैसे हुई, इसकी जानकारी उन्हें नहीं है।
वास्तविकता और जनाक्रोश
यह उल्लेखनीय है कि सोजत में आवारा सांडों एवं गायों के कारण पहले भी कई वृद्ध, महिलाएं एवं बच्चे चोटिल हो चुके हैं। नगर वासियों ने इस समस्या के समाधान के लिए कई बार प्रशासन को ज्ञापन दिए, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। इस फैसले से नगरवासियों में प्रशासन के प्रति नाराजगी और बढ़ गई है, क्योंकि आवारा पशुओं की समस्या लंबे समय से बनी हुई है।
यह मामला नगर पालिका की लापरवाही को उजागर करता है और उम्मीद है कि इस फैसले के बाद प्रशासन आवारा पशुओं की समस्या पर गंभीरता से विचार करेगा।