त्रैमासिक त्रिभाषा एकल काव्य पाठ एवं सांखला साहित्य सम्मान समारोह की चौथी कड़ी में ख़ूब रंग जमा
वरुण, वली, व प्रजापत ने अपने काव्य पाठ से श्रोताओं को किया आनंद विभोर

वरिष्ठ पत्रकार अब्दुल समद राही के साथ कासिम बीकानेरी की विशेष रिपोर्ट
बीकानेर 29 जून, 2025
मां जद भी राखे चूल्हे माथे हांडी/सगळा भाई भेळा हो जांवा आंगणे मांय/बापू राख दी हांडी ने आंगणे मांय।
राजस्थानी भाषा के कवि आलोचक डॉ. गौरी शंकर प्रजापत द्वारा प्रस्तुत ‘हांडी’ शीर्षक की इस राजस्थानी कविता की इन भावप्रद पंक्तियों से आज सांखला साहित्य सदन सराबोर हो उठा। अवसर था हिंदी एवं राजस्थानी भाषा के कीर्तिशेष साहित्यकार स्वर्गीय नरपत सिंह सांखला की स्मृति में स्व. नरपत सिंह सांखला स्मृति संस्थान द्वारा त्रैमासिक साहित्यिक श्रृंखला ‘त्रिभाषा एकल काव्य पाठ एवं सम्मान समारोह’ की चौथी कड़ी का। फिर तो कार्यक्रम में प्रजापत ने अपनी एक से एक उम्दा राजस्थानी कविताएं प्रस्तुत करके श्रोताओं को आनंद विभोर कर दिया। आपने ‘थारो फगत नांव याद है थारी यादां फगत सागै है’ कविता के ज़रिए राजस्थानी भाषा की मिठास से श्रोताओं की भरपूर तालियां बटोरी। आपने थारी याद,जीवण में गाठां क्यूं,तीसरी जमात, सीख, आत्मा रो मोल, हेत, रावण नी बळे, कीं केवण री जरूरत नीं है’ और ‘बसे ना ए सांवली जैसी बेहतरीन रचनाएं पेश करके श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करते हुए गहरे चिंतन मनन करने पर विवश कर दिया।
संस्थान सचिव वरिष्ठ शाइर कहानीकार क़ासिम बीकानेरी और संस्थापक वरिष्ठ शिक्षाविद्,संस्कृतिकर्मी संजय सांखला ने बताया कि साहित्यिक श्रृंखला की चौथी कड़ी में नगर के हिंदी,उर्दू एवं राजस्थानी भाषा के तीन वरिष्ठ रचनाकारों का एकल काव्य पाठ कार्यक्रम एवं सम्मान समारोह आयोजित किया गया।
जिसमें हिंदी भाषा के प्रख्यात कवि के तौर पर युवा कवि संजय आचार्य ‘वरुण’, वरिष्ठ उर्दू शाइर वली मोहम्मद ग़ौरी और राजस्थानी कवि आलोचक डॉ.गौरी शंकर प्रजापत ने अपनी एक से बढ़कर एक रचनाओं की प्रस्तुति से भरपूर वाहवाही लूटी।
क़ासिम और सांखला ने बताया कि कार्यक्रम की अध्यक्षता नगर के वरिष्ठ कवि कथाकार कमल रंगा ने की। रंगा ने अध्यक्ष उद्बोधन प्रस्तुत करते हुए कहा कि ऐसे आयोजन भाषाई अपनत्व एवं साझा संस्कृति को बल देते हैं। आपने कहा कि बीकानेर की काव्य परंपरा काफी समृद्ध रही है जिसे सवाई और सुरक्षित रखना हम सब का उत्तरदायित्व है। आपने तीन भाषा के तीनों रचनाकारों की रचनाओं पर अपने विचार पेश करते हुए कहा कि कार्यक्रम में राजस्थानी भाषा की मठोठ, उर्दू की मिठास एवं हिंदी भाषा के सौंदर्य की बख़ूबी बानगी प्रस्तुत करके तीनों रचनाकारों ने श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया। रचनाकारों ने अपनी रचनाओं में जीवन के कई संदर्भ खोले और त्रिभाषा एकल काव्य पाठ को नई रंगत दी।
उर्दू के वरिष्ठ शाइर वली मोहम्मद ग़ौरी ने अपनी ग़ज़ल के शे’रों के माध्यम से मां की अज़्मत यूं बयान की-
जाने लगा था दूर में बस्ती को छोड़कर
रोता जो मां को देखा इरादा बदल गया।
आपने बेटियों की शान में भी यह कलाम पेश करके बेटियों की ता’रीफ़ यूं बयान की-
रौनक हैं, घर की शान हैं, इज़्ज़त हैं बेटियां
चाहत वफ़ा ख़ुलूसो-मोहब्बत हैं बेटियां
‘वली’ ने मुख़्तलिफ़ रंग और लबो-लहजे की अनेक ग़ज़लें सुना कर कार्यक्रम में समां बांध दिया। उनके उम्दा कलाम के प्रस्तुतीकरण से सांखला साहित्य सदन तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। सदन में उपस्थित सभी प्रबुद्धजन वाह-वाह कह उठे। फिर तो ‘वली’ ने अपनी एक से बढ़कर एक उम्दा ग़ज़लें पेश करके श्रोताओं को लुत्फ़ अंदोज़ कर दिया।
हिंदी भाषा के युवा कवि संजय आचार्य ‘वरुण’ ने अपने काव्य पाठ के ज़रिए रिश्तों पर केंद्रित कलाम सुनकर श्रोताओं से भरपूर दाद लूटी। आपकी ‘बाबूजी’ शीर्षक की कविता के इन भावप्रवण शब्दों और उम्दा प्रस्तुतीकरण से श्रोताओं की आंखें नम हो गईं-
हम कच्ची गीली मिट्टी थे, हाथों से आकार दिया
एक तजुर्बा जीवन भर का, एक हुनर थे बाबूजी
फिर तो वे एक से बढ़कर एक उम्दा कविताएं, गीत और ग़ज़लें पेश करते रहे और ता’रीफ़ें पाते रहे। आपकी कविता एवं गीतों की प्रस्तुति ने श्रोताओं को वाह वाह कहने पर मजबूर कर दिया और वे फ़रमाइश पर फ़रमाइश करने लगे। आपने श्रोताओं की फ़रमाइश पर बेटी के नाम गीत सुनकर श्रोताओं को भावनाओं के सागर में गोते लगाने पर मजबूर कर दिया-
चिड़कली उड़ने को तैयार/आज चिड़े संग उड़ जाएगी अपने पंख पसार।
संस्थान की तरफ से रचना पाठ करने वाले तीनों रचनाकारों का माल्यार्पण, निशान-ए-यादगार, उपहार, क़लम और स्वर्गीय नरपत सिंह सांखला द्वारा रचित पुस्तक भेंट करके सांखला साहित्य सम्मान से सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम की प्रारंभ में समस्त अतिथियों एवं आगंतुकों का स्वागत करते हुए संस्था के संस्थापक संजय सांखला ने कहा कि स्वर्गीय नरपत सिंह सांखला की स्मृति में इस त्रैमासिक कार्यक्रम की श्रृंखला में आगे भी नगर के एक से बढ़कर एक रचनाकारों को आमंत्रित किया जाएगा। सांखला ने कहा कि हमें इस तरह के कार्यक्रमों के ज़रिए अच्छे-अच्छे रचनाकारों की रचनाओं से लाभान्वित होना चाहिए।
कार्यक्रम के संयोजक शाइर कहानीकार क़ासिम बीकानेरी ने कहा कि आज नगर के जिन तीन रचनाकारों ने रचना पाठ किया वे तीनों सिद्धहस्त रचनाकार हैं। तीनों रचनाकार नगर की काव्य परंपरा को पूरे देश में ख़ूबी के साथ समृद्ध कर रहे हैं। आपने कहा कि संस्थान द्वारा भविष्य में भी इस कार्यक्रम के ज़रिए नगर के हिंदी, उर्दू एवं राजस्थानी भाषा के वरिष्ठ एवं युवा रचनाकारों का एकल काव्य पाठ और सम्मान का यह क्रम जारी रहेगा।
कार्यक्रम में अनेक प्रबुद्धजन मौजूद थे। जिनमें वरिष्ठ उर्दू शायर ज़ाकिर अदीब, कवि कथाकार राजाराम स्वर्णकार, प्रोफ़ेसर डॉ. अजय जोशी, कवि गिरिराज पारीक, डॉ.मोहम्मद फ़ारूक़ चौहान, शाइर मोहम्मद इस्हाक़ ग़ौरी ‘शफ़क़’ बीकानेरी, वरिष्ठ कवि कथाकार प्रमोद कुमार शर्मा, डॉ.नमामी शंकर आचार्य, वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती इंद्रा व्यास, विप्लव व्यास, कवि कथाकार सुनील गज्जाणी, कवि शमीम अहमद ‘शमीम’, कवयित्री मधुरिमा सिंह, साहित्यानुरागी घनश्याम सिंह, साहित्यानुरागी हरिकृष्ण व्यास, शाइर माजिद ख़ान ग़ौरी, जगदीश आचार्य अमन, कवयित्री मुक्ता तैलंग, हास्य कवि बाबूलाल छंगाणी ‘बमचकरी,उर्दू लेक्चरर सईद अहमद,अनीस अहमद अब्बासी, देवीचंद पंवार, रामलाल नायक, हीरालाल, जय कृष्ण आचार्य, मोइनुद्दीन, धीरज कुमार, कैलाश कुमार, गौरीशंकर ‘योगी’ और रामस्वरूप सहित अनेक प्रबुद्ध जन उपस्थित थे। जिन्होंने तीनों बेहतरीन रचनाकारों की बेहतरीन रचनाओं का भरपूर रसास्वादन किया।
अंत में एडवोकेट इसरार हसन क़ादरी ने आभार ज्ञापित करते हुए कहा कि संस्थान का यह प्रयास सराहनीय है एवं इससे नगर के साहित्यकारों की कविताओं से लाभान्वित होने का अवसर मिल रहा है। इसके लिए संस्थान के समस्त पदाधिकारी साधुवाद के पात्र हैं। कार्यक्रम का संचालन शाइर कहानीकार क़ासिम बीकानेरी ने किया।

