वरिष्ठ पत्रकार और सोजत के इतिहास के जानकार श्री चेतन जी व्यास कि कलम से।
सोजत। प्राचीन एवं ऐतिहासिक नगरी सोजत आसोज सुदी नवमी को अपनी स्थापना के 972वें वर्ष में प्रवेश कर रही है। इस लंबे सफर में शहर ने अनेक रोचक घटनाओं, परंपराओं और बदलावों को देखा है।
अनोखी सजा – ‘गधा रोपना’ की परंपरा
रियासत काल के दौर में यदि किसी व्यक्ति या कौम ने राजा की आज्ञा का उल्लंघन किया या गलत काम किया, तो उन्हें एक अनोखी सजा दी जाती थी। पत्थर पर गधे का चित्र उकेरकर उस पर महाजनी लिपि में संबंधित व्यक्ति या कौम का नाम लिखा जाता और उनका ‘हुक्का पानी बंद’ कर दिया जाता। उन्हें निर्वासित कर कस्बे से बाहर निकाल दिया जाता।
आज भी इस परंपरा का एक साक्ष्य धानमंडी स्थित एक मंदिर के पास गड़ा पत्थर है।

टंटा पोल – पुराने सोजत की धड़कन
मुख्य बाजार में स्थित यह पोल कभी 20-25 परिवारों का ठिकाना हुआ करता था। यहां एक अनोखा किस्सा मशहूर है –
नीचे दफ्तर खाने में बैठा मुसाहिब (कारिंदा) आने वाले व्यक्ति का पूरा परिचय पूछता।
ऊपर बैठा मुनीम उस जानकारी को सुनकर बही-खाते में ढूंढ निकालता कि उनके बाप-दादा का कर्ज बाकी है या नहीं।
यहीं बड़े-बड़े झगड़ों का निपटारा भी होता था।
1960 के दशक में पोल के बाहर लगा एक विज्ञापन लोगों का ध्यान आकर्षित करता था। विज्ञापन में एक शेर, उसके पेट में सांप और सांप के पेट में शराब की बोतल का चित्र था, जिस पर लिखा था – “तीनों घातक हैं।” यह नशा मुक्ति अभियान का संदेश था।
आज यह जगह एक आधुनिक मार्केट में तब्दील हो चुकी है, जिसे मेहता मार्केट के नाम से जाना जाता है।
सोजत में सिनेमा का इतिहास
फिल्मों के प्रति सोजतवासियों का जुनून भी ऐतिहासिक रहा है।
प्रारंभ में चलचित्र मुथों का बास और मेहता साहब की स्कूल में दिखाए जाते थे।
बाद में जोशी जी की हवेली में चौहान टाकीज, गणेश टाकीज और प्रवीण टाकीज शुरू हुए।
1971 में राजेश खन्ना की सुपरहिट फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ जब यहां लगी, तो सोजत में अनोखा नजारा देखने को मिला।
स्व. श्री सोमनाथ व्यास, श्री रविंद्र गुप्ता और श्री लालचंद मोयल ने एक विशालकाय हाथी बनाया।
उसे टाकीज के बाहर साइकिल की दुकान की छत पर कई दिनों तक रखा गया।
हाथी को देखने के लिए सोजत ही नहीं, बल्कि आसपास के दर्जनों गांवों से लोग परिवार सहित आते थे।

अन्य हवेलियां और सिनेमाघर
मालियों की हवेली (पूर्व में हाकम साहब की हवेली) और सिंघवियों के बास में भी कभी सिनेमा घर चलते थे। इन यादों में सोजत का पुराना दौर आज भी जीवंत है।
सोजत का इतिहास न केवल स्थापत्य और परंपराओं का साक्षी है, बल्कि यहां की सांस्कृतिक धरोहर, सामाजिक परंपराएं और मनोरंजन के अनोखे तरीके इसे और भी खास बनाते हैं। टंटा पोल से मेहता मार्केट तक का सफर और फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ का उत्सव आज भी शहरवासियों की स्मृतियों में ताजा है।