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sojatnews.in > Blog > उत्तर प्रदेश, UP > 46 साल पहले संभल के इस मंदिर में किसने लगाया था ताला? 82 वर्षीय बुजुर्ग ने बताई सच्चाई
उत्तर प्रदेश, UP

46 साल पहले संभल के इस मंदिर में किसने लगाया था ताला? 82 वर्षीय बुजुर्ग ने बताई सच्चाई

omprakashborana2004@gmail.com
Last updated: December 16, 2024 9:20 am
omprakashborana2004@gmail.com
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Contents
मंदिर का इतिहास1978 के दंगे और मंदिर की बंदीमंदिर के पास कुआं और चबूतरामंदिर का पुनर्निर्माण और पूजा की शुरुआतमंदिर में ताले का रहस्यवर्तमान स्थिति और भविष्यविवाद और प्रशासन की भूमिका

उत्तर प्रदेश के संभल जनपद में हाल ही में एक मंदिर को लेकर एक दिलचस्प खुलासा हुआ है, जो 46 साल से बंद पड़ा हुआ था। इस मंदिर को लेकर कई सवाल खड़े हुए हैं, और स्थानीय निवासी विष्णु शरण रस्तोगी ने खुलासा किया कि साल 1978 में मंदिर पर ताला लगाने के पीछे उनका भतीजा था। यह मामला तब सुर्खियों में आया जब इस मंदिर को दोबारा खोला गया और प्रशासन ने उसके आसपास की ज़मीन से कुआं निकालकर चबूतरा बना दिया।

मंदिर का इतिहास

यह मंदिर भगवान शंकर का है और खग्गू सराय मोहल्ले में स्थित है। विष्णु शरण रस्तोगी, जो 82 साल के हैं, ने बताया कि वे जन्म से ही इस इलाके में रहते आए हैं। उन्होंने कहा, “हमारा घर इस मंदिर के पास था, और हम हमेशा से इस मंदिर को देख रहे थे। यह मंदिर तब से यहां है, जब से मुझे याद है।” उनका कहना था कि 1978 में हुए दंगों के बाद हिंदू परिवार इस इलाके से पलायन कर गए थे, जिसके बाद यह मंदिर बंद हो गया। वे बताते हैं कि उस समय मंदिर पर ताला लगा दिया गया था, और तब से यह मंदिर बंद पड़ा था।

1978 के दंगे और मंदिर की बंदी

संभल में 1978 में हुए दंगों ने इलाके की स्थिति को काफी बदल दिया था। इस दौरान हिंसा की घटनाओं ने पूरे मोहल्ले में डर और असुरक्षा का माहौल बना दिया था। जिसके कारण हिंदू परिवारों ने अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन कर दिया था। इस पलायन के बाद मंदिर भी अनदेखा हो गया और उसकी पूजा-अर्चना बंद हो गई। मंदिर के पुजारी भी इस समय स्थिर नहीं रह पाए, और इस स्थान पर पूजा करने कोई नहीं आया।

मंदिर के पास कुआं और चबूतरा

ताजा घटनाक्रम में प्रशासन ने मंदिर से सटे कुएं को निकालकर उस पर चबूतरा बना दिया है, जिस पर पहले कब्जा किया गया था। यह कार्रवाई तब हुई जब प्रशासन ने इस भूमि को खाली करवा लिया और मंदिर की देखरेख करने की प्रक्रिया शुरू की। विष्णु शरण रस्तोगी के अनुसार, यह कुआं बहुत पहले से ही यहां मौजूद था, लेकिन दंगे के बाद इसमें कब्जा कर लिया गया था। अब प्रशासन ने इसे पुनः साफ कर चबूतरा बना दिया है, ताकि लोग वहां से पानी ले सकें और पूजा स्थल को फिर से सही तरीके से देखा जा सके।

मंदिर का पुनर्निर्माण और पूजा की शुरुआत

संभल में यह मंदिर अब पुनः खोला गया है, और अब यहां पूजा अर्चना भी शुरू हो गई है। विष्णु शरण रस्तोगी का कहना है कि कई सालों बाद इस मंदिर में फिर से पूजा शुरू हो पाई है, और यह उनके लिए एक सुखद अनुभव है। वे बताते हैं कि अब इलाके में शांति का माहौल है, और लोग वापस लौटने लगे हैं। अब मंदिर के आसपास के क्षेत्र में फिर से लोग पूजा करने के लिए एकत्र हो रहे हैं, और यह घटना पूरे क्षेत्र के लिए एक नया प्रतीक बन गई है।

मंदिर में ताले का रहस्य

ताला लगाने के पीछे किसका हाथ था, यह सवाल अब तक चर्चा का विषय बना हुआ है। विष्णु शरण रस्तोगी ने बताया कि उनके भतीजे ने 1978 में ताला लगाया था। उनका कहना है कि दंगों के बाद जब इलाके से हिंदू परिवार पलायन कर गए थे, तो स्थिति इतनी भयावह थी कि कोई भी वहां रुकने की स्थिति में नहीं था। यही कारण था कि मंदिर को ताला लगाना पड़ा, ताकि उसे सुरक्षित रखा जा सके और किसी भी प्रकार की क्षति से बचाया जा सके।

वर्तमान स्थिति और भविष्य

मंदिर का फिर से खुलना इलाके के लिए एक सकारात्मक संकेत है। स्थानीय निवासियों के लिए यह घटना बहुत मायने रखती है, क्योंकि वे लंबे समय से इस मंदिर को फिर से सक्रिय देखने की आशा लगाए हुए थे। अब, जब पूजा अर्चना शुरू हो गई है, तो लोग यहां आने लगे हैं और मंदिर का माहौल पहले जैसा हो रहा है। यह मंदिर अब फिर से एक धार्मिक स्थल बन गया है, जहां लोग अपनी आस्था और विश्वास को पुनः व्यक्त कर सकते हैं।

विवाद और प्रशासन की भूमिका

संभल जिले में हाल के दिनों में शाही जामा मस्जिद और हरिहर मंदिर के सर्वे को लेकर विवाद हो गया था। इन घटनाओं ने पूरे इलाके में तनाव पैदा कर दिया था, और कुछ हिंसक घटनाओं में लोगों की मौत हो गई थी। इस बीच, प्रशासन ने अपनी भूमिका निभाते हुए मंदिर के पुनर्निर्माण और पूजा की शुरुआत में मदद की। अब जब मंदिर खुल गया है, तो स्थानीय प्रशासन ने वहां सुरक्षा व्यवस्था भी सुनिश्चित की है, ताकि किसी भी प्रकार की हिंसा या विवाद से बचा जा सके।

संभल के इस मंदिर के ताले का इतिहास और उसके बाद की घटनाएँ पूरे इलाके की धार्मिक और सामाजिक स्थिति को दर्शाती हैं। 1978 के दंगे और उसके बाद का पलायन, मंदिर की बंदी और अब उसका पुनर्निर्माण एक ऐसे संघर्ष का प्रतीक है जिसे इलाके के लोग अब फिर से शांति और समृद्धि की ओर बढ़ते हुए देख रहे हैं। यह घटना न केवल मंदिर के लिए, बल्कि पूरे समुदाय के लिए एक नई शुरुआत का प्रतीक बन गई है।

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