चीन की आक्रामक गतिविधियाँ भारत के लिए चिंता का सबब बनी हुई हैं, खासकर जब बात डोकलाम की आती है। डोकलाम, जो भारत, भूटान और चीन के त्रिकोणीय सीमा क्षेत्र में स्थित है, एक ऐसा विवादित इलाका है जहाँ साल 2017 में भारत और चीन के बीच सैन्य गतिरोध हुआ था। अब चीन ने इस क्षेत्र में कुछ ऐसा कदम उठाया है, जिससे न सिर्फ भूटान, बल्कि भारत भी परेशान हो गया है। हाल ही में सेटेलाइट इमेज से यह स्पष्ट हुआ है कि चीन ने डोकलाम क्षेत्र के नजदीक आठ नए गांवों का निर्माण कर लिया है, जिससे भारत की सुरक्षा को लेकर चिंताएं और बढ़ गई हैं।

चीन का डोकलाम में “कांड”: भूटान का चुप्पी साधना और भारत की बढ़ी चिंता
भूटान की चुप्पी और चीन की बढ़ती गतिविधियाँ
भूटान ने हमेशा इस बात से इनकार किया है कि चीन ने उसकी सीमा पर गांव बनाए हैं, और उसने इसे लेकर चुप्पी साध रखी है। भूटान का यह रवैया अब उस समय सामने आया है जब चीन ने डोकलाम के पास आठ नए गांव बसाए हैं। सेटेलाइट इमेज में यह साफ दिखाया गया है कि चीन ने भूटान के 825 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बस्तियां बसाई हैं। यह क्षेत्र भूटान का लगभग 2% है, और यहां लगभग 7,000 लोग बसाए गए हैं, जिनमें अधिकांश चीनी नागरिक, अधिकारी, मजदूर और सैनिक शामिल हैं।
हालांकि भूटान ने इन गांवों के अस्तित्व को नकारा किया है, लेकिन रिपोर्ट्स और सेटेलाइट इमेज ने इस सच्चाई को उजागर कर दिया है। 2023 में भूटान के पूर्व प्रधानमंत्री लोटे शेरिंग ने भी एक समाचार पत्र से यह बयान दिया था कि भूटान के क्षेत्र में चीनी बस्तियों की कोई मौजूदगी नहीं है, लेकिन चीन के इन लगातार कदमों ने उनके इस बयान की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
डोकलाम और भारत की चिंताएँ
डोकलाम वह क्षेत्र है जहां 2017 में भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच 73 दिनों तक तनावपूर्ण स्थिति बनी रही थी। चीन के द्वारा सड़क निर्माण का प्रयास किया गया था, जिससे भारतीय सुरक्षा को खतरा था। भारत ने अपनी सुरक्षा के हित में चीनी प्रयासों को विफल किया, और इसके बाद यह क्षेत्र एक बड़ा विवाद बन गया। अब, जब चीन डोकलाम के आस-पास आठ नए गांवों का निर्माण कर रहा है, तो यह भारत के लिए एक नई चिंता का कारण बन गया है, क्योंकि चीन ने भारत और भूटान के त्रिकोणीय सीमा को धीरे-धीरे अपनी गिरफ्त में लेने का प्रयास किया है।
चीन का रणनीतिक कदम
चीन की ये रणनीतियाँ सिर्फ सैन्य उद्देश्यों के लिए नहीं हैं, बल्कि इसके पीछे आर्थिक और सामरिक दृष्टिकोण भी हैं। डोकलाम क्षेत्र में गांवों का निर्माण और सैनिकों की तैनाती चीन की विस्तारवादी नीति का हिस्सा है। चीन इन गांवों से अपनी सैन्य गतिविधियों को और मजबूत करने का प्रयास कर रहा है। इन गांवों का सड़क नेटवर्क सीधे चीनी शहरों से जुड़ा हुआ है, जिससे चीनी सैनिकों और सामानों की आवाजाही में कोई रुकावट नहीं आती।
इसके अलावा, चीन का ये कदम भूटान के ऊपर दबाव बनाने के लिए भी है, क्योंकि भूटान एक छोटा देश है और अपनी संप्रभुता की रक्षा में चीन के मुकाबले भारत पर ज्यादा निर्भर है। चीन भूटान के क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए लगातार इस तरह के कदम उठा रहा है, जिससे भूटान को अपनी सीमाओं की रक्षा में समस्या हो सकती है।
भारत का रुख
भारत ने हमेशा भूटान की संप्रभुता का समर्थन किया है और यह सुनिश्चित किया है कि भूटान पर किसी भी बाहरी शक्ति का दबाव न हो। चीन के द्वारा भूटान के क्षेत्र में गांवों का निर्माण और सैनिकों की तैनाती भारत के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि यह भारत-चीन सीमा पर और भी ज्यादा तनाव उत्पन्न कर सकता है। भारत ने डोकलाम विवाद के समय भी अपनी पूरी शक्ति से चीन के खिलाफ अपनी स्थिति को मजबूती से रखा था और इस बार भी भारत को अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए तैयार रहना होगा।
भूटान के लिए दुविधा
भूटान के लिए यह स्थिति एक बड़ी दुविधा बन गई है। एक ओर जहां वह भारत का मित्र देश है और दूसरी ओर, उसे चीन से भी सावधान रहना पड़ता है। भूटान अपनी सीमाओं की सुरक्षा को लेकर भारत पर निर्भर है, लेकिन चीन का दबाव बढ़ने के कारण भूटान की स्थिति जटिल हो गई है। भूटान ने अपनी चुप्पी के साथ चीन के कदमों को नजरअंदाज करने की कोशिश की है, लेकिन अब स्थिति को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि क्या भूटान अपनी संप्रभुता की रक्षा कर पाएगा या फिर उसे चीन के दबाव में आकर कुछ कदम उठाने पड़ेंगे।
निष्कर्ष
चीन की इन गतिविधियों ने न केवल भूटान की संप्रभुता पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि भारत की सुरक्षा को लेकर भी चिंता बढ़ा दी है। भारत और भूटान के बीच मजबूत सुरक्षा सहयोग की आवश्यकता है, ताकि दोनों देशों के लिए चीनी आक्रामकता से निपटना संभव हो सके। चीन की रणनीति को समझते हुए, भारत को अपनी सीमाओं को और भी अधिक मजबूत करने की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में ऐसे किसी भी विवाद को शांतिपूर्वक हल किया जा सके।
भारत, भूटान और चीन के इस जटिल क्षेत्रीय संदर्भ में यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि क्षेत्रीय शक्तियों के बीच सहयोग और समझौता बढ़ाया जाए, ताकि कोई भी देश अपनी संप्रभुता की रक्षा कर सके और क्षेत्र में शांति बनी रहे।