राजस्थान के झुंझुनू जिले में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां पुलिस ने आत्महत्या की धमकी देने वाले किसान को बचाने के लिए बड़े स्तर पर सुरक्षा व्यवस्था की। लेकिन इस सराहनीय कार्य के बाद, पुलिस ने किसान को सुरक्षा इंतजामों पर हुए खर्च के नाम पर 9.91 लाख रुपये का बिल थमा दिया। इस घटना ने प्रशासनिक व्यवस्था और मानवीय संवेदनाओं को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
किसान ने आत्महत्या की दी थी धमकी
यह घटना उस समय शुरू हुई जब झुंझुनू जिले के रहने वाले किसान विद्याधर यादव ने अपनी भूमि अधिग्रहण के मुआवजे को लेकर प्रशासन और सीमेंट कंपनी की उदासीनता से तंग आकर आत्महत्या की धमकी दी। यादव का कहना है कि उन्होंने 9 दिसंबर को जिला कलेक्टर को राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपा, जिसमें 11 दिसंबर तक मुआवजा नहीं मिलने की स्थिति में आत्महत्या करने की बात कही थी।
किसान का कहना है कि वह लगातार एसडीएम और सीमेंट कंपनी के अधिकारियों से मुआवजा राशि जारी करने की गुहार लगा रहे थे, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हो रही थी। अंततः उन्होंने यह कदम उठाने की चेतावनी दी, जिससे प्रशासन सक्रिय हो गया।
पुलिस ने की बड़े पैमाने पर सुरक्षा व्यवस्था
11 दिसंबर की डेडलाइन को ध्यान में रखते हुए, झुंझुनू पुलिस ने विद्याधर यादव की सुरक्षा के लिए बड़े पैमाने पर पुलिस बल तैनात किया। इस सुरक्षा इंतजाम में एक एएसपी, दो डीएसपी, दो इंस्पेक्टर, तीन सब इंस्पेक्टर, छह सहायक सब इंस्पेक्टर, 18 हेड कांस्टेबल और 67 कांस्टेबल शामिल थे।
इसके अलावा, सुरक्षा व्यवस्था में सरकारी वाहनों का भी व्यापक उपयोग किया गया। झुंझुनू के एसपी शरद चौधरी के अनुसार, इन सभी उपायों से राज्य सरकार पर भारी खर्च आया। कुल 9.91 लाख रुपये के इस खर्च को अब किसान से वसूलने के लिए एक नोटिस जारी किया गया है।

किसान ने सुरक्षा की मांग नहीं की
विद्याधर यादव ने इस नोटिस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि उन्होंने कभी भी सुरक्षा की मांग नहीं की थी। यादव का कहना है कि यह पूरा मामला जिला प्रशासन और पुलिस की ओर से किया गया था। उन्होंने आरोप लगाया कि मुआवजे को लेकर प्रशासन की उदासीनता ने उन्हें आत्महत्या की धमकी देने पर मजबूर किया।
यादव ने यह भी कहा कि उन्होंने आत्महत्या का कदम उठाने का इरादा नहीं रखा था, बल्कि यह प्रशासन और कंपनी का ध्यान आकर्षित करने का एक तरीका था। लेकिन अब, पुलिस द्वारा सुरक्षा के नाम पर बिल थमाने से वह और अधिक परेशान हैं।
प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल
यह मामला कई सवाल खड़े करता है। पहला, क्या आत्महत्या की धमकी को संभालने का यह सही तरीका था? दूसरा, किसान को बचाने के लिए किए गए सुरक्षा इंतजामों की लागत वसूलना क्या न्यायसंगत है?
राजस्थान के किसान संगठनों ने इस घटना की निंदा की है और प्रशासन से यह स्पष्ट करने की मांग की है कि क्या यह मानवीय संवेदनाओं के साथ न्याय है। संगठनों का कहना है कि यह कदम किसानों को और अधिक हतोत्साहित करेगा, जो पहले से ही भूमि अधिग्रहण और मुआवजे के मामलों में परेशान हैं।
किसान का संघर्ष और सवालिया प्रशासनिक रवैया
यह मामला न केवल विद्याधर यादव की व्यक्तिगत पीड़ा का है, बल्कि यह पूरे देश के किसानों की स्थिति का प्रतीक भी है। प्रशासनिक व्यवस्था की निष्क्रियता और उसके बाद की कठोर कार्रवाई ने यह दिखा दिया है कि किस तरह से किसानों की समस्याओं को सुलझाने के बजाय और अधिक जटिल बना दिया जाता है।