✍️ वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश बोराणा
गाजियाबाद (लोनी), 3 जून — गाजियाबाद जिले के लोनी विधानसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक नंदकिशोर गुर्जर ने एक बार फिर चर्चा में आने वाला बयान देकर बकरीद से पहले सियासी और सामाजिक हलकों में बहस छेड़ दी है। इस बार उन्होंने मुस्लिम समुदाय से अपील करते हुए कहा है कि वे “असल बकरा” काटने के बजाय “केक के बकरे” को काटें और इस तरह इको फ्रेंडली बकरीद मनाएं।
🎤 क्या कहा विधायक ने?
विधायक नंदकिशोर गुर्जर ने बकरीद से पहले एक प्रेस वार्ता के दौरान यह बयान दिया। उन्होंने कहा:
“किसी भी बेजुबान जानवर को काटना इंसानियत के खिलाफ है। समय बदल गया है, हमें अपने त्योहारों में भी पर्यावरण और संवेदनाओं का ध्यान रखना चाहिए। मैं मुस्लिम भाइयों से अपील करता हूं कि इस बार केक के बकरे को काटकर बकरीद मनाएं। इससे एक सकारात्मक संदेश जाएगा और हमारी आने वाली पीढ़ियों को भी एक अच्छा उदाहरण मिलेगा।”
📌 “इको फ्रेंडली” बकरीद की बात
विधायक की यह अपील उस समय आई है जब देशभर में ईद-उल-अजहा (बकरीद) को लेकर तैयारियां तेज़ हैं। पारंपरिक रूप से इस पर्व पर जानवरों की कुर्बानी दी जाती है, जो इस्लामिक धार्मिक परंपराओं का हिस्सा है। लेकिन विधायक का कहना है कि समय के साथ रीति-रिवाजों में बदलाव होना चाहिए, और धार्मिक भावनाओं को आहत किए बिना एक पर्यावरण के अनुकूल विकल्प अपनाया जाना चाहिए।
💬 प्रतिक्रिया मिली-जुली
विधायक के इस बयान पर प्रतिक्रिया भी तुरंत सामने आने लगी है:
- मुस्लिम संगठनों ने इसे धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप बताते हुए विरोध किया है। कुछ संगठनों ने कहा कि यह इस्लामिक परंपराओं की अवमानना है और धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ है।
- कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं और पशु प्रेमी संगठनों ने विधायक की पहल को सराहते हुए कहा कि इस तरह के विचार सामाजिक बदलाव ला सकते हैं।
- वहीं, राजनीतिक गलियारों में भी बयान को लेकर बहस छिड़ गई है। विपक्षी दलों ने इसे धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिश बताया है।
📚 धार्मिक संदर्भ क्या कहता है?
बकरीद, जिसे ईद-उल-अजहा कहा जाता है, इस्लामी परंपरा के अनुसार हज़रत इब्राहीम द्वारा अपने पुत्र की कुर्बानी देने की इच्छा और अल्लाह की ओर से भेजे गए बकरे की याद में मनाई जाती है। यह कुर्बानी इस्लाम धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक कृत्य माना जाता है, जिसे हर सक्षम मुस्लिम करता है।
🧠 सवाल खड़े हो रहे हैं:
- क्या धार्मिक परंपराओं में इस तरह का बदलाव संभव है?
- क्या एक विधायक को इस तरह की धार्मिक अपील करनी चाहिए?
- क्या यह संवैधानिक रूप से उचित है?
🏛️ प्रशासन की भूमिका
फिलहाल स्थानीय प्रशासन ने विधायक के बयान पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन सुरक्षा व्यवस्था को लेकर बकरीद से पहले सतर्कता बढ़ा दी गई है। कहीं भी साम्प्रदायिक तनाव न फैले, इस पर नजर रखी जा रही है।
लोनी विधायक नंदकिशोर गुर्जर की ओर से की गई “केक वाला बकरा काटो” अपील जहां एक ओर पशु-प्रेमियों और पर्यावरण समर्थकों को सकारात्मक संदेश देती दिख रही है, वहीं दूसरी ओर यह मुस्लिम समुदाय की धार्मिक परंपराओं से टकराती नजर आ रही है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या धार्मिक आस्था और आधुनिक सोच के बीच कोई संतुलन संभव है या यह टकराव आने वाले समय में और गहराएगा?