वरिष्ठ पत्रकार चेतनजी व्यास की रिपोर्ट।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी,रेल मंत्री अश्विनी कुमार वैष्णव एवं सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विकसित भारत के विजन की सराहना सर्वत्र हो रही हैं खास बात यह है कि इस विकास के केंद्र में भारत की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक छवि भी परिलक्षित होती हैं।

अभिनव कला मंच सोजत सचिव चेतन व्यास की धार्मिक सांस्कृतिक पर्यटन यात्राओं में यह झलक बेंट द्वारका गुजरात, नेपाल के जनक पुर से भारत के सीमांत शहर जयनगर एवं प्रयाग राज,काशी तथा अयोध्या में देंखने को मिला हाल ही में प्रभास पाटन गुजरात क्षेत्र की यात्रा में बेट द्वारका में वर्ष 2024 में सुदर्शन पुल सुदामा सेतु के उद्घाटन से मोदी के विजन को संपूर्ण भारत ने देखा। बेट द्वारका का इतिहास 5 हजार वर्ष पुराना है।
यात्रा में संग्रहित जानकारी अनुसार इस स्थान के इतिहास एवं भूगोल के बारे में ज्ञात होता है कि द्वारका के तट से दूर एक छोटा सा द्वीप, जहाँ ओखा के रास्ते पहुँचा जा सकता है, इसी नाम का मंदिर स्थित है और माना जाता है कि भगवान कृष्ण के यहाँ आने पर उन्होंने यहीं निवास किया था। इस मंदिर की स्थापना का श्रेय गुरु वल्लभाचार्य को दिया जाता है। मुख्य मंदिर के अलावा, परिसर में हनुमान, विष्णु, शिव, लक्ष्मी नारायण, जाम्बवती, देवी और अन्य मंदिरों में भी पूजा की जाती है।

संक्षिप्त इतिहासः बेट द्वारका, जिसे शंखोद्धार के नाम से भी जाना है, के बारे में कहा जाता है कि द्वारका में अपने शासन के वर्षों के भगवान कृष्ण का निवास स्थान यही था। इसका नाम ‘बेट’ या भेंट शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ ‘उपहार’ होता है और ऐसा माना जाता है कि श्री कृष्ण ने यहां अपने मित्र सुदामा से चार मुठ्ठी चावल प्राप्त किए थे और बदले में सुदामा की जानकारी बिना उसे अकूत संपत्ति प्रदान की थी।
प्राचीन महाभारत में, बेट द्वारका को ‘अंतरद्वीप’ के रूप में जाना जाता था यहां यादव वंश के लोग नाव से यात्रा करते थे सुदर्शन सेतु बनने से पूर्व बेट द्वारका के दर्शन करने जाने वाले श्रद्धालुओं को समुद्र के रास्ते नाव द्वारा पहुचना पड़ता था लेकिन वर्तमान में नावें केवल मछलियां पकड़ने के लिए ही काम में ली जाती हैं।
आजादी के बाद समुद्र के नीचे किए अन्वेषणों और उत्खनन से ऐसी बस्तियों की उपस्थिति का पता चला जिनका काल हड़प्पा सभ्यता और मौर्य शासन के युग तक जाता है। आजादी पूर्व वर्षों में, यह क्षेत्र बड़ौदा राज्य के गायकवाड़ वंश के प्रशासन के अधीन था। 1857 के विद्रोह के दौरान, वाघेरों ने इस क्षेत्र पर आक्रमण और इस पर कब्जा कर लिया था, लेकिन दो वर्षों में उन्हें हार माननी पड़ी और यह क्षेत्र गायकवाड़ को वापस करना पड़ा।
फरवरी 2024 में, सुदर्शन सेतु का भव्य उद्घाटन एक ऐतिहासिक क्षण था क्योंकि यह ओखा और बेट द्वारका के बीच की दूरी को निर्बाध रूप से पार करते हुए देश का सबसे लंबा केबल ब्रिज बन गया। यह ऐतिहासिक उपलब्धि देवभूमि द्वारका की सफलता की गाथा को और समृद्ध बनाती है, जो प्रगति और विकास की ओर उसकी यात्रा का प्रतीक है।
जिले के एक प्रमुख स्थल के रूप में, सुदर्शन सेतु एक विकसित भारत और एक समृद्ध गुजरात की दूरदर्शी आकांक्षाओं का प्रतीक है, जो विकसित भारल और विकसित गुजरात के सार को समाहित करता है सोजत क्षेत्र के दर्शनार्थी सोजत रोड़ से रेल द्वारा द्वारका पहुंच सकते हैं आगे विरावल से सोमनाथ ज्योतिर्लिंग एवं भाल्लका तीर्थ भी देख सकते हैं द्वारका से विरावल तक रेल आवागमन सबसे श्रेष्ठ शासन हैं और जो लोग अरब सागर में वोटिंग करना चाहते हैं वो शिवराज बीच जो ज्यादा दूर नहीं हैं जाकर कर सकते हैं।
