कानपुर:
जिन प्रदीप कुमार को 22 साल पहले पाकिस्तान के लिए जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, वे अब अतिरिक्त जिला न्यायाधीश (ADJ) बनने जा रहे हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया है कि वे प्रदीप कुमार को नियुक्त करने के लिए जरूरी पत्र जारी करें। यह मामला कानपुर से जुड़ा हुआ है, जहां 2002 में प्रदीप पर देशद्रोह, आपराधिक साजिश, और ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था। हालांकि, 2014 में उन्हें सबूतों के अभाव में अदालत ने बरी कर दिया था।

“पाकिस्तान के लिए जासूसी का आरोप झेलने वाले प्रदीप कुमार बनेगें जज, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नियुक्ति का आदेश दिया”
क्या था पूरा मामला?
13 जून, 2002 को STF और मिलिट्री इंटेलिजेंस ने कानपुर के एक ऑपरेशन में प्रदीप कुमार को गिरफ्तार किया। उस समय 24 वर्षीय प्रदीप लॉ के छात्र थे। आरोप था कि प्रदीप ने ‘फैजान इलाही’ नामक एक व्यक्ति के कहने पर कानपुर छावनी से जुड़ी संवेदनशील जानकारी कुछ पैसों के बदले साझा की थी। फैजान, जो एक फोटोस्टेट की दुकान चलाता था, ने प्रदीप को टेलीफोन पर जानकारी देने के लिए कहा था। इस मामले में प्रदीप पर देशद्रोह और अन्य गंभीर आरोप लगाए गए।
हालांकि, कानपुर की अदालत ने 2014 में उन्हें बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि इस बात का कोई ठोस प्रमाण नहीं है कि प्रदीप ने किसी विदेशी खुफिया एजेंसी के लिए काम किया हो।
कड़ी मेहनत के बाद बने जज
2016 में बरी होने के दो साल बाद प्रदीप कुमार ने उत्तर प्रदेश उच्च न्यायिक सेवा परीक्षा (UPHJS) दी और सीधी भर्ती में 27वां स्थान हासिल किया। 2017 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को उनके सहित अन्य चयनित उम्मीदवारों की नियुक्ति की सिफारिश की। हालांकि, सरकार ने प्रदीप की नियुक्ति पर रोक लगा दी।
प्रदीप ने इस फैसले को चुनौती दी और इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया। कोर्ट ने सरकार के फैसले को ‘अन्यायपूर्ण’ ठहराते हुए उनके पक्ष में फैसला दिया। अदालत ने सरकार को निर्देश दिया कि प्रदीप को 15 जनवरी 2025 से पहले नियुक्ति पत्र जारी किया जाए।
हाईकोर्ट का अहम फैसला
हाईकोर्ट की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा, “प्रदीप कुमार पर लगाए गए आरोप बेबुनियाद थे और उन्हें बिना सबूतों के इतने सालों तक परेशान किया गया। किसी नागरिक पर अपराध का शक उसे उसकी कड़ी मेहनत और ईमानदारी का हकदार बनने से वंचित नहीं कर सकता।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि कोई सबूत नहीं है कि प्रदीप ने किसी विदेशी खुफिया एजेंसी के लिए काम किया हो। उन्होंने अपनी रिहाई के बाद यूपी न्यायिक सेवा परीक्षा पास की और चयनित उम्मीदवारों की सूची में जगह बनाई।
परिवार का विवादास्पद अतीत
प्रदीप कुमार का मामला और भी दिलचस्प है क्योंकि उनके पिता को 1990 में रिश्वतखोरी के आरोप में अतिरिक्त न्यायाधीश के पद से निलंबित किया गया था। इसके बावजूद, प्रदीप ने अपनी कड़ी मेहनत और लगन से यह मुकाम हासिल किया।
सुप्रीम कोर्ट का हवाला और जुर्माना
प्रदीप की नियुक्ति में हुई देरी को लेकर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया। अदालत ने सरकार के ‘उदासीन रवैये’ पर सवाल उठाते हुए कहा कि नियुक्ति में बाधा डालना न्यायिक प्रक्रिया के खिलाफ है।
कड़ी मेहनत और अदम्य इच्छाशक्ति की मिसाल
प्रदीप कुमार का यह सफर कड़ी मेहनत, धैर्य और न्याय के प्रति विश्वास की मिसाल है। 22 साल पहले जिस व्यक्ति पर देशद्रोह और जासूसी जैसे गंभीर आरोप लगे थे, वही व्यक्ति आज न्यायपालिका में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहा है।