✍️ वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश बोराणा
सूरत/गुजरात:
धर्म और आस्था की आड़ में एक युवती की अस्मिता को रौंदने वाले जैन मुनि को आखिरकार न्यायालय ने सख्त सजा सुनाई है। सूरत की सेशन कोर्ट ने जैन दिगंबर संप्रदाय के मुनि शांतिसागरजी महाराज को 19 वर्षीय कॉलेज छात्रा से रेप के मामले में 10 साल की सश्रम कैद की सजा सुनाई है। अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश ए.के. शाह की अदालत ने आरोपी पर 25,000 रुपए का जुर्माना भी लगाया है।
पूरा मामला: धर्म के नाम पर विश्वास तोड़ा
यह मामला वर्ष 2017 का है, जब ग्वालियर की रहने वाली 19 वर्षीय छात्रा वडोदरा के एक कॉलेज में पढ़ाई कर रही थी। पीड़िता के परिवार का सूरत के नानपुरा स्थित महावीर दिगंबर जैन मंदिर में आना-जाना था। जैन मुनि शांतिसागर के प्रवचनों से प्रभावित यह परिवार उनके संपर्क में था। 1 अक्टूबर 2017 को धार्मिक अनुष्ठान के बहाने पूरे परिवार को मंदिर बुलाया गया। मंदिर परिसर में ही रुकने की व्यवस्था की गई थी।
पीड़िता ने बताया कि जैन मुनि ने मंत्र जाप कराने के बहाने उसे अपने कमरे में बुलाया और यह कहकर कि अगर बात नहीं मानी तो परिवार पर कोई अनहोनी हो सकती है, उससे दुष्कर्म किया।
दूसरे दिन बिगड़ी तबीयत, तब हुआ खुलासा
अगले दिन युवती की तबीयत बिगड़ने पर उसने अपने परिवार को आपबीती बताई। इसके बाद सूरत के अठवालाइंस थाने में शिकायत दर्ज कराई गई। मेडिकल जांच में रेप की पुष्टि हुई और पुलिस ने अक्टूबर 2017 में शांतिसागर को गिरफ्तार कर लिया था।
आरोपी का दावा – सहमति से थे संबंध, लेकिन कोर्ट ने नहीं माना
गिरफ्तारी के बाद शांतिसागर महाराज ने दावा किया था कि उन्हें फंसाया गया है। उन्होंने डॉक्टर को बताया था कि वह लड़की को 5-6 महीने से जानते हैं और उसकी सहमति से शारीरिक संबंध बनाए गए थे। हालांकि मेडिकल रिपोर्ट, पीड़िता के बयान और परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर अदालत ने मुनि को दोषी माना और 10 साल की सजा सुनाई।
डॉक्टर से पूछे गए सवाल पर झुकाया सिर
मेडिकल जांच के दौरान डॉक्टर ने जब मुनि से पूछा कि आप एक साधु होकर ऐसा कैसे कर सकते हैं, तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया और सिर झुका लिया। यह घटना डॉक्टर द्वारा मेडिको-लीगल केस रजिस्टर में दर्ज की गई है।
कौन हैं शांतिसागर महाराज?
शांतिसागर महाराज का असली नाम गिरराज शर्मा है, जो मध्यप्रदेश के गुना जिले में अपने ताऊजी के साथ रहते थे। उनका परिवार राजस्थान के कोटा में रहता था, जहां उनके पिता हलवाई थे। 22 वर्ष की उम्र में गिरराज ने पढ़ाई छोड़ दी और मंदसौर में जैन संप्रदाय के संपर्क में आकर दीक्षा ली। इसके बाद वह शांतिसागर महाराज बने और देशभर में प्रवचन देने लगे।
न्याय की जीत और धर्म के नाम पर अपराध की हार
इस फैसले ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि कानून के सामने कोई भी व्यक्ति, चाहे उसका धार्मिक या सामाजिक पद कितना ही ऊंचा क्यों न हो, दोषी पाए जाने पर दंड से नहीं बच सकता। यह फैसला उन पीड़ितों के लिए भी उम्मीद की किरण है, जो अब भी न्याय की आस लगाए बैठे हैं।