वरिष्ठ पत्रकार चेतनजी व्यास कि रिपोर्ट।
सोजत, 20 मई। अखिल भारतीय वैदिक धर्म प्रचार सभा आश्रम, जम्मू के संस्थापक ब्रह्मनिष्ठ स्वामी निर्मल स्वरूप जी महाराज ने सोजत प्रवास के दौरान श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि वर्तमान समय में युवा पीढ़ी भारतीय संस्कृति को भूलकर पाश्चात्य संस्कृति की ओर आकर्षित हो रही है, जो कि अत्यंत चिंताजनक है। यदि यही स्थिति बनी रही, तो भारत अपनी सांस्कृतिक पहचान को खो सकता है।
स्वामी जी ने कहा कि वैदिक संस्कार जीवन जीने की एक कला है और यह ज्ञान यज्ञ के समान है। उन्होंने बताया कि जहां एक ओर हमारे देश के युवा अपनी संस्कृति से विमुख हो रहे हैं, वहीं पश्चिमी देशों के युवा भारतीय संस्कृति की शीतल छांव में आत्मिक एवं आध्यात्मिक आनंद प्राप्त कर रहे हैं।
उन्होंने माता-पिता से अपील की कि वे अपने बच्चों को उच्च शिक्षा के साथ-साथ वैदिक संस्कृति की शिक्षा भी अवश्य दें, क्योंकि भारतीय धर्मशास्त्रों में वर्णित धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जैसे जीवन मूल्य अद्वितीय हैं।
स्वामी जी ने “वसुधैव कुटुंबकम” तथा “अयं निजः परो वेति…” जैसे श्लोकों का उल्लेख करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति सभी प्राणियों को एक परिवार मानती है और प्राणीमात्र की सेवा को सर्वोच्च पुण्य माना गया है। उन्होंने महर्षि वेदव्यास का हवाला देते हुए कहा कि “परोपकार से बढ़कर कोई पुण्य नहीं और दूसरों को कष्ट देने से बड़ा कोई पाप नहीं।”
स्वामी जी ने युवाओं को भौतिकवाद की अंधी दौड़ से बाहर निकलकर आत्मिक शांति की ओर लौटने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि आज मानव की आवश्यकताएं सीमित हैं, लेकिन उसकी आकांक्षाएं असीमित हैं, जो दुःखों का मूल कारण है।
उन्होंने यह भी कहा कि यदि विश्व में शांति स्थापित करनी है, तो हमें भारतीय सनातन संस्कृति के सह-अस्तित्व के मूल्यों को अपनाना होगा। उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता में योगेश्वर श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए ज्ञान को आज के संदर्भ में भी प्रासंगिक बताया।
स्वामी जी के अनुयायी उमेश शर्मा ने जानकारी दी कि स्वामी जी का सोजत में दो से तीन दिन का और प्रवास रहेगा।