✍️ वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश बोराणा

/कोटा/अंता, 24मई — राजस्थान की राजनीति में बड़ा उलटफेर देखने को मिला है। अंता विधानसभा क्षेत्र से विधायक कंवरलाल मीणा की विधानसभा सदस्यता को रद्द कर दिया गया है। यह फैसला उस पुराने आपराधिक मामले के चलते लिया गया जिसमें वे दोषी करार दिए जा चुके हैं। इस फैसले ने राजनीतिक हलकों में खलबली मचा दी है और कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
क्या है पूरा मामला?
कंवरलाल मीणा ने 2023 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस नेता प्रमोद जैन भाया को 5,861 वोटों से हराकर अंता सीट अपने नाम की थी। यह जीत काफी चर्चित रही थी क्योंकि भाया अंता सीट से तीन बार विधायक रह चुके थे और कांग्रेस के मजबूत नेता माने जाते हैं।
लेकिन मात्र डेढ़ साल बाद ही कंवरलाल की सदस्यता पर संकट के बादल मंडराने लगे। वजह बनी एक 20 साल पुरानी आपराधिक घटना, जिसमें उन पर आरोप था कि उन्होंने एक सरकारी एसडीएम (उपखंड अधिकारी) पर पिस्टल तानी थी और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया था।
सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद बढ़ी कानूनी सक्रियता
इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने कंवरलाल को दोषी पाया था। जब मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा तो सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें ट्रायल कोर्ट में सरेंडर करने का आदेश दिया। इस आदेश के अनुपालन में कंवरलाल ने 21 मई को सरेंडर किया।
चूंकि किसी भी जनप्रतिनिधि को यदि दो साल या उससे अधिक की सजा होती है, तो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत उसकी सदस्यता स्वतः समाप्त हो जाती है। इसी के आधार पर अब कंवरलाल मीणा की विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी गई है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और संभावित प्रभाव
यह फैसला अंता क्षेत्र में राजनीतिक समीकरणों को पूरी तरह से बदल सकता है। कांग्रेस खेमा इसे अपनी नैतिक जीत बता रहा है, वहीं भाजपा और निर्दलीय खेमे में बेचैनी देखी जा रही है। अटकलें तेज हैं कि अंता में अब उपचुनाव की स्थिति बन सकती है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला एक महत्वपूर्ण उदाहरण बनेगा कि कैसे अतीत के अपराध एक नेता के वर्तमान और भविष्य को प्रभावित कर सकते हैं, भले ही उन्होंने चुनाव जीत लिया हो।
जनता में मिली-जुली प्रतिक्रिया
अंता क्षेत्र की जनता इस घटनाक्रम को लेकर दोराहे पर है। कुछ लोग इसे न्याय की जीत बता रहे हैं, तो कुछ समर्थक इसे साजिश करार दे रहे हैं। लेकिन एक बात तय है—यह मामला आने वाले दिनों में राजस्थान की राजनीति में काफी चर्चा में रहने वाला है।
कंवरलाल मीणा की सदस्यता रद्द होना न सिर्फ उनके राजनीतिक करियर के लिए झटका है, बल्कि यह जनता और बाकी नेताओं के लिए भी एक चेतावनी है कि लोकतंत्र में कानून से ऊपर कोई नहीं। अब देखना होगा कि अंता सीट पर उपचुनाव कब होते हैं और राजनीतिक दल किन चेहरों पर दांव लगाते हैं।