लेखक ऑल इंडिया हाल वेलफेयर सोसाइटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं
हाजियों की खिदमत में जी-जान से जुटे रहते हैं मुंबई के खिदमतगार : मुकीत खान
..✍️ अल्लाह खूब जज़ाए खैर दे हज के मैदान में बेलौस खिदमत अंजाम दे रहै मुंबई के खिदमतगारों को, क्या दिन-क्या रात चौबीस घंटे बस अल्लाह के मेहमानों की खिदमत, काम धंधा एक तरफ ऱख तन-मन-धन से खिदमत में लगे रहने वाले खिदमतगारों के जज़्बे को बार-बार सलाम,
मुंबई में बहुत सी तंज़िमें हाजियों की खिदमत के काम में बरसों से लगी हुई हैं, इंफ़्रादी तौर पर भी लोग हर मुमकिन खिदमत में जुटे रहते हैं, न कोई दिखावा न कोई गरज़, मकसद सिर्फ यही कि हज पर जाने वाले हज को सीखकर जाएँ उनके कोई ज़रूरी अरकान छूट न जाएँ, हज के लिए नाम का इंतेखाब होते ही जगह-जगह तरबियत का सिलसिला जो शुरू होता है तो हाजियों के वापस वतन आने तक चलता रहता है, हज हाऊस की मस्जिद हो या महाराष्ट्र हज कमेटी के दफ्तर (साबू सिद्दीक मुसाफिर खाने) की मस्जिद हर नमाज़ के बाद हज से मुताल्लिक तरबियत का एहतेमाम, एहराम बाँधने से लेकर तवाफ करना, सफा-मरवा की सही, शैतान को कंकरी मारने की अमली मश्क़ भी बताई जाती है, लेडिज़ के लिए अलग से लेडिज़ ट्रेनर्स का इंतज़ाम रहता है, एयरपोर्ट पर P9 में बनी मस्जिद में भी हाजियों के इस्तक़बाल के साथ उनको बहुत सी समझाईश दी जाती है, चूँकि केंद्रीय हज कमेटी का मरकज़ भी मुंबई है लिहाज़ा यहॉं के ऑफिसर, तमाम मुलाज़िम सभी का खिदमतगारों को अच्छा तआवुन मिलता है, मिलजुलकर हाजियों का ऐसा बेहतरीन नज़्म बनाया जाता है जो हाजियों के लिए इत्मीनान और आसानी का सबब बनता है, सऊदी पहुँचते ही व्हाट्सअप ग्रुपों के ज़रिये से भी उनकी रहनुमाई की जाती है, उनके हर सवालों का इत्मीनान बख्श जवाब दिया जाता है, हज के अय्याम में भी बारीक से बारीक़ बातें व्हाट्सअप पर मैसेज, विडिओ के ज़रिये बताई जाती है,
वैसे तो हिंदुस्तान के हर हज इम्बॉरकेशन पॉइंट पर इसी तरह खिदमत अंजाम दी जाती है, खिदमतगार बेलौस दिल-ओ-जान से जुटे रहते हैं, आजकल सोश्यल मीडिया के ज़रिये सभी जगह से मालूमात मुहैया हो जाती है, लेकिन चूँकि हम मुंबई से जुड़े हैं साल 2000 से मुसलसल ही जाना हो रहा है, बीच में 10 साल मध्यप्रदेश से भी आज़मीन की रवानगी रही, अब भी कुछ फ्लाइट्स जाती है यहॉं भी भरपूर जज़्बे के साथ खिदमतगार मुंसलिक रहते हैं, जब मध्यप्रदेश की फ्लाइट्स खत्म हो जाती थी हम मुंबई पहुँच जाते थे वहाँ के खिदमतगारों की खिदमत देखने, उनसे कुछ सीखने, थोड़ा बहुत उनके काम में हाथ बंटाने, खास बात यह कि यहॉं ख्वातीन भी हर वक़्त खिदमत में लगी रहती है हज हाऊस से लेकर एयरपोर्ट तक हज पर जाने वालों की रहनुमाई करती हैं,
हज हाऊस मुंबई में खिदमतगारों का जज़्बा तो देखते ही बनता है, इसी जज़्बे को बिरादराने वतन जो वहाँ बतौर सिक्योरिटी गार्ड ड्यूटी पर तैनात रहते हैं उनमें भी देखा जा सकता है, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के अलावा बहुत से सूबे के आज़मीन मुंबई से जाते हैं इस वजह से यहॉं काफ़ी भीड़ रहती है, हज हाऊस में दाखिल होते ही ये सिक्योरिटी गार्ड हाजियों के लगैज को खींचकर लगैज काउंटर तक ले जाते देखे जा सकते हैं वे भी खिदमत में अपना बराबर तआवुन देते हैं, हज हाऊस से एयरपोर्ट के लिए बस की रवानगी से पहले जहाँ खिदमतगार साथी हाजियों को तरबियत देते हैं वहीं उन्हें बस के अंदर बैठाकर एयरपोर्ट जाते वक़्त रास्ते में भी सिखाते हुए ले जाते हैं, रात हो या दिन यह सिलसिला चलता रहता है तब तक जब तक आख़री फ्लाइट रवाना नहीं हो जाती,
ये जो कुछ लिखा गया है मुंबई के खिदमतगारों के लिए बहुत थोड़ा है इसमें बहुत सी बातें यक़ीनन छूट भी गई होंगी, मेरे पास मुंबई हज की खिदमत के ऐसे भी वाक्यें हैं जिन्हें लिखूं तो पता नहीं कितना बड़ा मैसेज बन जाए बहरहाल रियाकारी से दूर, अल्लाह की रज़ा के लिए काम करने वाले मुंबई के खिदमतगारों के लिए यहीं दुआ है अल्लाह उनकी खिदमत को कुबूल करे उनकी नस्लों से भी हाजियों से साथ दीन के हर शोबों में खिदमत का काम लेता रहै।