✍️ वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश बोराणा
मुंबई।
भौतिकता की चकाचौंध और कॉर्पोरेट दुनिया की चोटी पर विराजमान एक ऐसा नाम, जिसने सबकुछ होते हुए भी आत्मिक शांति के मार्ग को चुना। रिलायंस इंडस्ट्रीज के वाइस प्रेसिडेंट और चेयरमैन मुकेश अंबानी के करीबी माने जाने वाले प्रकाशभाई शाह ने जैन दीक्षा लेकर संन्यासी जीवन की राह पकड़ ली है। मुंबई में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में उन्होंने सांसारिक मोह-माया त्याग कर दीक्षा ली।
प्रकाशभाई शाह की सालाना सैलरी 75 करोड़ रुपए थी और वे रिलायंस इंडस्ट्रीज के सबसे भरोसेमंद अधिकारियों में गिने जाते थे। इसके बावजूद उन्होंने सांसारिक जीवन, ऐश्वर्य, पद और प्रतिष्ठा सबकुछ त्यागकर आध्यात्मिक जीवन को गले लगाया। इस निर्णय ने पूरे देश में सनसनी फैला दी है और सोशल मीडिया से लेकर कॉर्पोरेट गलियारों तक लोग इस त्याग की मिसाल पर चर्चा कर रहे हैं।
रिलायंस इंडस्ट्रीज में था महत्वपूर्ण स्थान
श्री प्रकाशभाई शाह कई वर्षों से रिलायंस इंडस्ट्रीज के उच्च प्रबंधन में कार्यरत थे। उन्हें मुकेश अंबानी का ‘राइट हैंड’ माना जाता था। कंपनी की कई महत्वपूर्ण रणनीतियों और निर्णयों में उनकी भूमिका केंद्रीय रही है। सूत्रों के अनुसार, उन्हें व्यवसाय में असाधारण समझ, प्रबंधन कौशल और अनुशासन के लिए जाना जाता था।
आध्यात्मिक जीवन की ओर झुकाव
प्रकाशभाई शाह पिछले कुछ वर्षों से जैन धर्म और उसके सिद्धांतों की ओर आकर्षित हो रहे थे। उन्होंने कई धार्मिक यात्राएं कीं, मुनियों के सान्निध्य में समय बिताया और अंततः संन्यास लेने का निर्णय लिया। दीक्षा कार्यक्रम में उन्होंने समस्त सांसारिक वस्तुएं, मोबाइल फोन, घड़ी, आभूषण, और यहां तक कि अपने व्यक्तिगत बैंक खाते से भी मुक्ति पा ली।
जैन आचार्य के सान्निध्य में ली दीक्षा
प्रकाशभाई शाह ने प्रसिद्ध जैन आचार्य भगवंत श्री के निर्देशन में दीक्षा ली। दीक्षा के समय उनका नाम भी परिवर्तित किया गया और अब वे मुनि जीवन में प्रवेश कर गए हैं। दीक्षा समारोह में हजारों श्रद्धालु, उद्योग जगत की हस्तियां, और उनके परिवारजन उपस्थित रहे।
‘पैसा सब कुछ नहीं होता’ की जीवंत मिसाल
यह घटना भारत ही नहीं, विश्व के कॉर्पोरेट इतिहास में एक मिसाल बन गई है। जब अधिकांश लोग धन, पद और सत्ता के पीछे भागते हैं, ऐसे में किसी का अपने जीवन की चोटी पर पहुंचकर सबकुछ त्याग देना एक प्रेरणादायक उदाहरण है।
इस त्याग ने पुनः सिद्ध कर दिया कि —
“सच्ची शांति और आत्मिक आनंद केवल आध्यात्मिक मार्ग पर चलकर ही प्राप्त हो सकता है, भले ही आपके पास कितना भी धन-दौलत क्यों न हो।”
समाज में व्यापक प्रतिक्रिया
प्रकाशभाई शाह के इस निर्णय पर सोशल मीडिया पर लोग उन्हें प्रेरणास्रोत बता रहे हैं। कई उद्योगपतियों और प्रमुख जैन संतों ने इसे “धर्म की विजय” बताया है। वहीं, युवाओं में भी यह प्रेरणा जगाने वाला क्षण बना है कि जीवन केवल भौतिक उपलब्धियों का नाम नहीं है।
यह त्याग सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, एक विचारधारा का पुनर्जन्म है — कि जीवन की सबसे बड़ी पूंजी आत्मशांति है।