वरिष्ठ पत्रकार चेतनजी व्यास की रिपोर्ट।
स्कंध पुराण के प्रभास खंड अध्याय में भगवान श्री कृष्ण के बैकुंठ लोक गमन का वर्णन है सोजत की सामाजिक संस्था अभिनव कला मंच सचिव चेतन व्यास की द्वारका सोमनाथ विरावल आदि की धार्मिक सांस्कृतिक पुरातात्विक तथ्यों की जानकारी जुटाने के तहत यात्रा में यह तथ्य प्रकाश में आया कि श्री कृष्ण 125 वर्ष तक जीवित रहे एवं गुज़रात के प्रभास क्षेत्र में विरावल के समीप भाल्लका तीर्थ में उनकी मृत्यु एक सामान्य इंसान की तरह हुई यह प्राचीन पावन तीर्थ वेरावल से प्रभास जाने के मार्ग पर स्थित है।

कथानक अनुसार मद्यपान से चुर यादवो का परस्पर कलह में संहार हुआ। इससे खिन्न होकर भगवान श्री कृष्ण ने यहाँ पिप्पल के पेड के निचे अपना बायाँ पैर दाहिने पैर पर रखकर योग समाधी में बैठ गये थे। तब जरा नामक व्याध (भील शिकारी) ने भगवान श्री कृष्ण के चरण कमल में पद्म के निशान को मृग का मुख समझकर तीर मारा। व्याध का यह तीर भगवान श्री कृष्णजी के दाहिने पाँव के तल मे लगा।

जब व्याध अपने शिकार के समीप पहुँचा, उसने देखा कि उसका शिकार एक मृग नही परंतु एक यादव पिताम्बरधारी पुरुषोत्तम थे। वह भयभीत होकर अपने अपराध की क्षमा मांगने लगा। तब भगवान श्री कृष्ण ने उसको आश्वासन दिया । ” जो कुछ हुआ है वह मेरी इच्छा से ही हुआ है।” ऐसा कहकर व्याध को क्षमा कर दिया और अपनी कान्ती से वसुंधरा को व्याप्त करके निजधाम प्रस्थान किया यहाँ व्याधने भगवान श्री कृष्ण को भल्ल (बाण) मारा इसीलिए इस स्थान को भल्ल (भालका) तीर्थ कहा जाता है।

कहते हैं कि श्री कृष्ण ने द्वारका में 36 वर्ष तक शासन किया एवं 125 वर्ष की आयु में उन्होंने देह त्याग की भाल्लका तीर्थ में शैया पर विराजमान भगवान श्री कृष्ण एवं उनके पांव लगे तीर की प्रतिकृति तथा कटे हुए पीपल का तना आज भी इस मंदिर में उनका साक्षी है इस क्षेत्र में क ई मंदिर जिनमें महादेव के मंदिर भी सम्मिलित हैं तथा दो कुंड,पिपल तथा अन्य वृक्ष एवं त्रिवेणी संगम की नदिया एवं सागर का पानी हिलोरे लेता है ।
भालका तीर्थ के आसपास विरावल में राम मंदिर,परशुराम तपस्या स्थली, पांडवों की कुल देवी हिंगलाज माता मंदिर, सूर्य कुंड, भीमनाथ महादेव मंदिर,बलदेव की गुफा मंदिर, शंकराचार्य जी की गुफा सहित कई मंदिर हैं तथा समुद्र सा उथाले मारता हिरण,कपिला एवं सरस्वती नदी का स्वच्छ पानी एवं उसके अंदर दो बड़े शिवलिंग मौजुद है।
