बदलते समय के साथ बच्चों की सोच और व्यवहार में तेजी से परिवर्तन देखने को मिल रहा है। पहले जहां बच्चे बड़ों के सामने झिझकते थे, वहीं आज वे बिना हिचक अपनी राय थोपने से भी पीछे नहीं हटते।
हाल ही में कौन बनेगा करोड़पति (KBC) के मंच पर पाँचवीं कक्षा के एक बाल प्रतिभागी के ओवर-कॉन्फिडेंस ने सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी —

क्या नई पीढ़ी आत्मविश्वासी हो रही है या अति-आत्मविश्वासी?
तकनीक और सोशल मीडिया ने बच्चों की सोच को तेज़ी दी है, लेकिन संयम, अनुशासन और मर्यादा जैसे संस्कार धीरे-धीरे धुंधले होते जा रहे हैं।
स्मार्टफ़ोन, रील्स और गेम्स ने बच्चों को वक़्त से पहले “बड़ा” तो बना दिया है, पर “समझदार” नहीं।
“अदब किताबों में रह गया, तहजीब कहानी हो गई,
बचपन की मासूमियत अब, मोबाइल की क़ैदी हो गई।”
बच्चों में टैलेंट और जानकारी की कोई कमी नहीं, लेकिन ज्ञान और घमंड के बीच की पतली लकीर अक्सर मिटती जा रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि असली चुनौती यह नहीं कि बच्चे आगे बढ़ रहे हैं, बल्कि यह है कि वे बिना मार्गदर्शन के आगे बढ़ रहे हैं।

माता-पिता और शिक्षकों को मिलकर बच्चों में संयम, विनम्रता और संवेदनशीलता के संस्कार फिर से मजबूत करने होंगे।
“ऊँची उड़ान भरना तुम, सपनों को सच कर लेना,
मगर घमंड की आग में, ख़ुद को न राख कर लेना।”
यदि आज की पीढ़ी को संस्कार और तकनीक का संतुलन सिखाया जा सका, तो कल वही पीढ़ी समाज को नई दिशा देगी — जहाँ ज्ञान के साथ विनम्रता, और उड़ान के साथ ज़मीन भी होगी।
