पाक-अफगान सीमा पर संघर्ष का बढ़ता दायरा
पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच सीमा पर हिंसा और झड़पों का सिलसिला तेज हो गया है। हालिया संघर्ष में 19 पाकिस्तानी सैनिकों और 3 अफगान नागरिकों की मौत हो चुकी है। अमू टीवी की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तानी सेना ने दावा किया है कि तालिबान ने उसकी सीमा चौकियों पर “बिना उकसावे के” गोलीबारी की। पाकिस्तानी सेना के जवाबी हमले में 15 से अधिक तालिबानी लड़ाकों के मारे जाने का दावा किया गया है।
यह हिंसक झड़पें पाकिस्तानी एयर स्ट्राइक के बाद हुई हैं, जिसमें पक्तिका प्रांत में 51 लोगों की मौत हुई, जिनमें महिलाएं और बच्चे शामिल थे। अफगान तालिबान ने इस हवाई हमले को झड़पों की वजह बताया है।

तालिबान से बढ़ते तनाव के बीच पाकिस्तान के लिए संकट: क्या सीमा संघर्ष बनेगा बड़े टकराव का कारण?
तालिबान: एक अजेय ताकत?
तालिबान का इतिहास उसे एक अजेय और कठोर विरोधी के रूप में पेश करता है। उसने सोवियत संघ और अमेरिका जैसी महाशक्तियों के खिलाफ सफलतापूर्वक संघर्ष किया और दोनों को अफगानिस्तान से बाहर कर दिया। वह दो बार काबुल की सत्ता पर काबिज हो चुका है और खुद को अफगानिस्तान की सबसे बड़ी राजनीतिक और सैन्य ताकत के रूप में स्थापित कर चुका है।
पाकिस्तान के लिए तालिबान से टकराव किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। खासकर तब, जब पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था गंभीर संकट का सामना कर रही है। पाकिस्तान के सीमावर्ती क्षेत्रों में तालिबान की पकड़ मजबूत है, और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) जैसे आतंकी संगठन भी पाकिस्तानी सरकार और सेना के लिए बड़ा खतरा बने हुए हैं।
पाकिस्तान और तालिबान के रिश्तों में दरार
एक समय था जब तालिबान को पाकिस्तान का संरक्षक माना जाता था। पाकिस्तान ने तालिबान को शरण, धन और कूटनीतिक समर्थन प्रदान किया। 9/11 के बाद जब अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया, तो तालिबान नेताओं ने पाकिस्तान में शरण ली थी।
लेकिन अब तालिबान अपनी रणनीति बदल रहा है। उसने पाकिस्तान पर अपनी निर्भरता कम करने का रास्ता चुना है और अपने अन्य पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया है। यह बदलाव पाकिस्तान के लिए एक चेतावनी है, क्योंकि दशकों तक तालिबान पर उसका प्रभाव अब कमजोर पड़ रहा है।
टीटीपी: एक और चुनौती
पाकिस्तान के लिए तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) एक अलग और गंभीर चुनौती है। यह संगठन पाकिस्तान सरकार को गिराकर कट्टर इस्लामी शासन स्थापित करना चाहता है। टीटीपी का गढ़ अफगानिस्तान और पाकिस्तान की सीमा पर स्थित जनजातीय क्षेत्र है।
टीटीपी ने पाकिस्तान के खिलाफ कई आतंकवादी अभियान चलाए हैं और अपनी ताकत बढ़ाने के लिए अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा क्षेत्र से लड़ाकों की भर्ती करता है। यह तालिबान और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव का एक अहम कारण है।
तालिबान की रणनीति
तालिबान पाकिस्तान की सैन्य ताकत से अच्छी तरह परिचित है और किसी भी कदम को सोच-समझकर उठाएगा। अगर तालिबान संघर्ष को आगे बढ़ाता है, तो यह उसकी सोची-समझी रणनीति का हिस्सा होगा। वह जानता है कि पाकिस्तान इस समय आंतरिक संकटों, आर्थिक बदहाली, और अंतरराष्ट्रीय दबावों से जूझ रहा है।
संघर्ष के गंभीर परिणाम
अगर सीमा पर यह संघर्ष बढ़ता है, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। पाकिस्तान को न केवल अपनी सैन्य ताकत झोंकनी पड़ेगी, बल्कि उसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय का सामना भी करना होगा। दूसरी तरफ, तालिबान का बढ़ता दबदबा पूरे क्षेत्र में अस्थिरता का कारण बन सकता है।