आचार्य श्री माधव शास्त्री जी कि कलम से।
सोजत, 30 मार्च 2025 – भारतीय पंचांग के अनुसार नूतन वर्ष का आगमन हुआ, जिसे ज्योतिषीय दृष्टि से विशेष महत्व प्राप्त है। विद्वान शास्त्री ने बताया कि पंचांग तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण के संयोग से निर्मित होता है, जो दिन की प्रकृति और स्वभाव को समझने में सहायता करता है।
भारत की प्राचीन ज्योतिष परंपरा के अनुसार, सूर्य जिस दिशा में उदय होता है, वही दिन की शुरुआत का संकेत देता है। हमारे ऋषि-मुनियों ने पृथ्वी को ब्रह्माण्ड का केंद्र मानते हुए 360 डिग्री के आकाश मंडल को 12 राशियों में विभाजित किया। इन राशियों के साथ 27 नक्षत्रों को समायोजित कर ग्रहों की गति और परिक्रमण को समझा जाता है।
शास्त्री ने बताया कि सूर्य और चंद्रमा के मध्य दूरी के आधार पर तिथि का निर्धारण होता है, जिसका चरम बिंदु अमावस्या और पूर्णिमा होती हैं। इन्हीं के आधार पर महीनों की अवधारणा बनी। भारतीय पंचांग में माह पूर्णिमान्त गणना के आधार पर तय होते हैं, जिसमें प्रत्येक नक्षत्र के अनुसार महीनों के नाम रखे गए हैं।
वर्तमान समय में विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के अपने पंचांग होते हैं, भले ही उनके नाम भिन्न हों, परंतु सभी ग्रहों और नक्षत्रों की गति एवं स्वभाव को समान रूप से स्वीकारते हैं। भारत में वित्तीय वर्ष और सामाजिक वर्ष दो प्रकार से मनाए जाते हैं—एक वसंत ऋतु में सूर्य के नव प्रवेश के साथ और दूसरा दीपावली के समय।
भारतीय ज्योतिष परंपरा अपनी प्राचीनता और वैज्ञानिकता के कारण विश्व में सम्मानित है। इस अवसर पर सभी से विश्वबंधुत्व की भावना को अपनाते हुए अहिंसा और सद्भाव के साथ नववर्ष का स्वागत करने का आह्वान किया गया।