वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश बोराणा
अजमेर।
वक्फ संपत्तियों को लेकर केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित संशोधित वक्फ कानून पर देशभर में बहस तेज है। इसी बीच अजमेर दरगाह से जुड़ी दो प्रमुख हस्तियों के बीच तीखी बयानबाज़ी सामने आई है। दरगाह दीवान सैयद जैनुल आबेदीन के बेटे और सज्जादानशीन नसरुद्दीन चिश्ती ने नए वक्फ कानून का समर्थन करते हुए कहा है कि “इस कानून से नुकसान नहीं बल्कि फायदा है। इससे पारदर्शिता आएगी और वक्फ संपत्तियों का सही उपयोग सुनिश्चित होगा।”
वहीं दूसरी ओर दरगाह अंजुमन के सचिव सैयद जादगार सरवर चिश्ती ने इस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि “जो मुसलमान वक्फ कानून के समर्थन में बोल रहे हैं, वे सरकार की पे-रोल पर हैं। ऐसे लोग अपने निजी स्वार्थों के लिए हुकूमत की चापलूसी कर रहे हैं।”
नसरुद्दीन चिश्ती ने क्या कहा?
दरगाह दीवान के बेटे नसरुद्दीन चिश्ती ने कहा, “वक्फ संपत्तियां मुसलमानों की धरोहर हैं, लेकिन दशकों से इनका सही तरीके से उपयोग नहीं हो रहा। नया कानून अगर इन संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता लाता है, तो हम सभी को इसका समर्थन करना चाहिए। इससे धार्मिक संस्थानों को भी लाभ मिलेगा और जनहित में बेहतर कार्य हो सकेंगे।”
सरवर चिश्ती का पलटवार
नसरुद्दीन के इस बयान पर अंजुमन के सचिव सरवर चिश्ती भड़क गए। उन्होंने कहा, “कुछ लोग अपने फायदे के लिए मुसलमानों की आवाज़ को दबा रहे हैं। वक्फ संपत्तियों को सरकारी नियंत्रण में देने का मतलब है मुसलमानों की मिल्कियत पर सरकारी कब्ज़ा। ऐसे में जो लोग समर्थन कर रहे हैं, वे या तो अनजान हैं या फिर किसी एजेंडे के तहत काम कर रहे हैं।”
दरगाह के भीतर मतभेद उजागर
अजमेर दरगाह की सियासत में यह विवाद कोई नया नहीं है, लेकिन वक्फ कानून को लेकर दोनों पक्षों की तीखी बयानबाज़ी ने एक बार फिर इस पवित्र स्थल को सियासी और धार्मिक बहस का केंद्र बना दिया है।
मुस्लिम समाज में बंटी राय
वक्फ संशोधन बिल को लेकर मुस्लिम समाज भी दो हिस्सों में बंटा नजर आ रहा है। एक ओर कुछ लोग इसे समाज के हित में बता रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इसके ज़रिए सरकारी दखल को लेकर चिंता भी जताई जा रही है।
सरकार की नीयत पर सवाल
सरवर चिश्ती और उनके समर्थकों का मानना है कि सरकार वक्फ संपत्तियों को कब्ज़े में लेकर मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करना चाहती है। वहीं नसरुद्दीन चिश्ती जैसे लोग इसे सुधारात्मक कदम मानते हुए इसका समर्थन कर रहे हैं।
आगे क्या?
इस विवाद ने दरगाह शरीफ के भीतर नई बहस को जन्म दे दिया है। अब देखना होगा कि दोनों पक्षों के इस टकराव का असर आने वाले समय में दरगाह की धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों पर कितना पड़ता है।
यह मुद्दा सिर्फ अजमेर तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह पूरे देश में वक्फ संपत्तियों को लेकर चल रही बहस को और तेज करेगा।