फागोत्सव-होली
रचयिता– डॉ हस्ती मल आर्य हस्ती , जोधपुर
फाल्गुन माह सनातन संस्कृति में ही नहीं बल्कि आंग्ल ईसवी वर्ष में भी एक महत्वपूर्ण महिना है जो प्राय: मार्च महीने में आता है।
यह माह बरसाती फसल जैसे गेहूं,चावल,चना एवं मसाला जीरा, कपास, रायड़ा इत्यादि की लहलहाती कटाई पर आ जाती या कट जाती है। और किसान मज़दूर लोग राहत रूप में अब खुशियां मनाने,थोड़ा आराम करने,नाचने गाना कर अपना मनोरंजन करते थे। उसी प्रथा का संवहन इस फागोत्सव रुप में सृजन करने की प्रथा सी बनी हुई है, जो चांदनी सुहानी रात को सामूहिक दिन-रात नाच-गाना करते हैं, और पूर्णिमा की चांदनी राह चमकाने में चार चांद लगा देती है। प्रकृति भी साथ चलती है जब पतझड़ बाद नव कौंपले पौधों में विकसित हो पल्लवित होने लगती ,बसंत की बहार आती है। विशेष कर मरू-जीवन में यह सोने में सुहागा आगाज होता है। मंद-मंद मद्धिम ठंड का मौसम, उधर सुहाती सूर्य की धूप कठोर ठंड से राहत देने लगती वहीं फसलों की कमाई में राहत मरू-“जीवन में बसंत ले आती, फागोत्सव का समय यादगार बनाती। पारिवारिक जीवन में भी रंग भरती है।
प्रेम, हंसी -मजाक ,मनोरंजन, अल्हड़ वाक- व्यंजनों के साथ सुहाने मौसम बन जाता है । सनातन ने इसे होली त्यौहार से जोड़ कर धार्मिक रूप दिया। समय के साथ गुलाल व बाद में रंगों से जोड़ धार्मिक पुट देकर
भारत में इसे धार्मिक पर्व बना दिया गया। और धर्म से जोड़कर यह हिरण्यकश्यप, प्रह्लाद व होलिका के प्रसंग आप सब से भली भांति जानकारी में ही है। इस प्रसंग से ही तथाकथित यह उत्सव रूप में मनाया जाने लगा है।
और इससे इस पर्व की पवित्रता और महत्व और अधिक हो गयी।
होली के संदर्भ में *राजा रघु के समय राक्षसी ढुंडा* को समाप्त करने बच्चों के हुड़दंग को जोड़ा गया। वहीं प्रेम, प्यार ,मोह, रोमांस व प्रजनन अनुष्ठान तथा को शिवजी, इंद्रदेव, कामदेव, वसंत से फाल्गुन की पूर्णिमा से जोड़ कर मौसम की नजाकत व महत्व समझाया गया।
होली के दौरान “ढुंड” करने की प्रथा शायद यहीं से शुरू हुई।
अन्य तरीके से वैज्ञानिक संदेश देने का प्रयास हैं कि आने वाला समय इस होली की आंच से गर्म हवाओं व आग सा रह सकता है , इसकी तैयारी में रहें।
कुल मिलाकर होली वास्तव में Holi (पवित्र) एवं पवित्रता का संदेश प्रतीक है।
पावन प्रेम, अनुराग, विनोद, मनोरंजन, प्रजनन के साथ समता, समानता, एकता तथा बुराई पर अच्छाई का सर्व व्यापी संदेश देता है।
*होली है नाचो-गाओ*
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सजाने साज उज़लाने रंग
पूर्णिमा की चांदनी के संग
रंग बद रंगों की करने पहचान
अपने परायों का करना है ज्ञान
करते मस्ती मजाक हंसी ठिठोली
चले हम खेलने-खिलाने वो होली
देते जाओ प्रेम प्यार का संदेश
बुरा न मानो होली ये है विशेष।
रंगों की मर्यादाएं संग नाचो गाओ
इक दूजे का बन, स्वादित छू जाओ
जाति-धर्म,गोरे-कालों का भेद मिटा दो
क्षेत्र वर्ण वर्ग जाति सब मन से हटा दो
हर भेद मिटाकर नई फिजां सजा दो
भातृत्व भारतीयता-भाव दिलों बसा दो।
नई फसल है नए धान की खुशी मनाओ
आओ मिल जुल हस्ती बन नाचो-गाओ।।
फागोत्सव-होली
रचयिता- डॉ हस्ती मल आर्य हस्ती जोधपुर

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